Book Title: Jin Dharm Vivechan
Author(s): Yashpal Jain, Rakesh Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 95
________________ १८८ जिनधर्म-विवेचन ३. गोम्मटसार (जीवकाण्ड), गाथा ५७२ में आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने कहा है- “व्यवहार, विकल्प, भेद और पर्याय - ये सब एकार्थवाची हैं।" ४. आचार्य उमास्वामी ने तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय ५, सूत्र ४२ में कहा है- 'तद्भावः परिणामः । अर्थात् उसका होना, प्रतिसमय बदलते रहना, उसे पर्याय कहते हैं। २२४. प्रश्न - पर्याय का कर्ता कौन है? उतर - पर्याय के कर्ता को लेकर अन्य-अन्य विवक्षाओं से अलगअलग कथन निम्नानुसार हैं - १. द्रव्य की मुख्यता से विचार करते हैं तो द्रव्य ही पर्याय का कर्ता है । द्रव्य को व्यापक और पर्याय को व्याप्य माना गया है। समयसार कलश ४९ में आचार्य अमृतचन्द्रदेव कर्ता-कर्म का खुलासा करते हुए कहते हैं - “व्यापक अर्थात् द्रव्य, व्याप्य अर्थात् पर्याय । व्यापक द्रव्य कर्ता है और व्याप्यरूप पर्याय कर्म है।" - इसका स्पष्ट अर्थ है - द्रव्य कर्ता है और उसकी पर्याय कर्म है। जब कभी हमें कर्ता-कर्म का व्यवस्थित या सुनिश्चित ज्ञान / खुलासा / विवेचन अपेक्षित हो तो द्रव्य नियम से परिणमन करता है ऐसा समझना चाहिए। यहाँ एक जीवद्रव्य को लेकर कर्ता-कर्म कहा है, इसका अर्थ मात्र जीवों में कर्ता-कर्म घटित होता है - ऐसा नहीं । प्रत्येक द्रव्य में यह कर्ता-कर्म सम्बन्ध अबाधित है। जीवद्रव्य एवं उसकी पर्याय अथवा पुद्गलद्रव्य एवं उसकी पर्यायें तो हम आपको स्पष्ट जानने में आती हैं। इसी तरह धर्म-अधर्मद्रव्य, आकाश एवं कालद्रव्य में भी ऐसा ही समझना चाहिए। हाँ, इन चार अरूपी द्रव्यों के कर्ता-कर्मपने को तर्क एवं युक्ति से ही समझना आवश्यक है। आचार्य अमृतचन्द्र ने ही समयसार कलश ५१ में भी इसी विषय को और स्पष्ट किया है - (95) पर्याय-विवेचन "यः परिणमति स कर्ता, यः परिणामो भवेत्तु तत्कर्म । या परिणतिः क्रिया सा, त्रयमपि भिन्नं न वस्तुतया ॥ अर्थात् जो परिणमित होता है, वह कर्ता है; उसका जो परिणाम है, वह कर्म है और उसकी जो परिणति है, वह क्रिया है ये तीनों वस्तुरूप से भिन्न नहीं हैं। " - १८९ मिट्टी कर्ता है और घट कर्म है, यह कर्ता-कर्म सम्बन्ध तो जैन अध्यात्म जगत् में अति प्रसिद्ध है तथा कुम्भकार, घटकार्य में निमित्त मात्र है। २. भेदनय की अपेक्षा से हम गुण को भी कर्ता कह सकते हैं। जब हम जीवद्रव्य के ज्ञानगुण को स्वीकारेंगे तो ज्ञानगुण कर्ता हुआ और केवलज्ञान की पर्याय, उसका कर्म हुई। ज्ञानावरण कर्म का सम्पूर्ण क्षय होने से केवलज्ञान उत्पन्न होता है - यह व्यवहारनय का कथन है, निमित्तप्रधान कथन है। ज्ञानगुण का परिणमन केवलज्ञानरूप होता है, इसलिए ज्ञानगुण कर्ता है और केवलज्ञानरूप पर्याय कर्म है ऐसे कर्ता-कर्म की स्वीकृति होती है। २२५. प्रश्न - पर्याय का कर्ता गुण है - इसे उदाहरणसहित स्पष्ट करें। उतर - एक गुण का कार्य अथवा परिणमन, उसी एक गुण में से ही आता है; उसी द्रव्य के अन्य गुण में से या अन्य द्रव्य में से नहीं आता । जैसे- हमने कच्चे, हरे तथा खट्टे आम को पकने के लिए पाल / घास में रखा; आम पका, पीला तथा मीठा हो गया। अब हमें यह निर्णय करना है कि आम का हरा रंग बदल कर पीला रंग कहाँ से और किस प्रकार हुआ ? आम में जो पीलापन आया है, वह आम के वर्णगुण में से आया है अथवा पाल अर्थात् घास में से आया है? यहाँ हम पर्याय का स्वरूप समझने का कार्य कर रहे हैं, अतः आपका सहज उत्तर होगा कि आम में पीलापन उसके वर्णगुण में से आया है, पाल/घास आदि में से नहीं आया। पाल, घास, कमरा आदि पीलेपन में निमित्त हैं।

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