Book Title: Jin Dharm Vivechan
Author(s): Yashpal Jain, Rakesh Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 49
________________ जिनधर्म-विवेचन शास्त्रों में इसी काल (पंचमकाल) में मुनि जम्बूकुमार आदि के मोक्ष जाने का उल्लेख भी है। साथ ही विदेहक्षेत्र के मुनि को, यदि कोई पूर्वभव का बैरी इस भरतक्षेत्र में अभी ले आए तो वह मुनि, उग्र पुरुषार्थ के बल से यहाँ से भी इसी पंचमकाल में मोक्ष प्राप्त कर सकता है। इससे सिद्ध होता है कि मुक्ति में दोष, क्षेत्र - काल का नहीं, बल्कि स्वयं का है।" गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ५७७ में आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने कहा है - "यह व्यवहारकाल, मनुष्यक्षेत्र में ही समझना चाहिए। मनुष्यक्षेत्र के अन्दर ही ज्योतिषी देवों के विमान गमन करते हैं और इनके गमन का काल और व्यवहारकाल, दोनों समान हैं।" ९६ हरिवंशपुराण, सर्ग ७ के श्लोक १० में कहा है- “ये कालाणु, अनन्त समयों के उत्पादक होने से अनन्त भी कहे जाते हैं।" १०१. प्रश्न - लोक के बाहर अलोकाकाश में कालद्रव्य का अभाव होने से उसका परिणमन कैसे होता है? उत्तर – जिसप्रकार बहुत बड़े बाँस के एक भाग को हिलाने पर पूरा बाँस हिल जाता है अथवा जैसे, स्पर्शन-इन्द्रिय या रसना - इन्द्रिय के विषय का सुखद या दुःखद अनुभव, एक अंग में करने पर समस्त शरीर में सुख या दुःख का अनुभव होता है; उसी प्रकार लोकाकाश में स्थित जो कालद्रव्य हैं, वह आकाश के एक देश में स्थित है तो भी उनके निमित्त से सर्व अलोकाकाश में परिणमन होता है; क्योंकि आकाश, एक अखण्ड द्रव्य है। १०२. प्रश्न- कालद्रव्य को न मानने से क्या हानि होती है? उत्तर - कालद्रव्य को न मानने से यह अज्ञानी जीव, स्वयं परिणमन करते हुए जीवादि द्रव्यों के परिणमन को स्वयं परिणमन कराने का मिथ्याभाव रखता है। मानो वह स्वयं कालद्रव्य होता हुआ मिथ्यात्व का पोषण करता है; उस कारण उससे मोक्षमार्ग दूर चला जाता है। (49) कालद्रव्य - विवेचन ९७ १०३. प्रश्न छह द्रव्यों का विभाजन किस-किस प्रकार से हो सकता है ? उत्तर - १. चेतन-अचेतन की अपेक्षा २. मूर्त-अमूर्त की अपेक्षा, ३. क्रियावती - भाववतीशक्ति की अपेक्षा तथा ४. प्रदेशों की अपेक्षा | इन चारों का खुलासा करते हैं - चेतन-अचेतन (जीव- अजीव ) की अपेक्षा छह द्रव्यों का विभाजन१. आचार्य कुन्दकुन्द, प्रवचनसार ग्रन्थ की गाथा १२७ में कहते हैं - " द्रव्य, जीव और अजीव हैं; उनमें जो चेतनामय तथा उपयोगमय हैं, वे जीव हैं और पुद्गलद्रव्यादिक अचेतन द्रव्य, अजीव हैं।" २. आचार्य कुन्दकुन्द ही पंचास्तिकाय शास्त्र की गाथा १२४ में बतलाते हैं- “आकाश, काल, पुद्गल, धर्म और अधर्म द्रव्यों में जीव के गुण नहीं हैं; क्योंकि उन्हें अचेतनपना कहा है तथा जीव में चेतनता कही है। " ३. पाँचों परमागम एवं अन्य ग्रन्थों में प्राप्त अलिंगग्रहण की गाथा में 'जीव को चेतनागुणवाला' कहा है। ४. श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्तदेव विरचित द्रव्यसंग्रह शास्त्र के मंगलाचरण में ही कहा है - "देवेन्द्रों के द्वारा वन्दित जिनवरवृषभ भगवान ने जीव और अजीव द्रव्यों का वर्णन किया है।" ५. आचार्य उमास्वामी ने तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थ के ५ वें अध्याय के सूत्र १ से लेकर सूत्र ५ तक यही सिद्ध किया है - "छह द्रव्यों में पाँच द्रव्य अचेतन हैं और एक जीवद्रव्य चेतन है।" मूर्त-अमूर्त की अपेक्षा छह द्रव्यों का विभाजन - १. आचार्य कुन्दकुन्द ने पंचास्तिकाय गाथा ९७ में कहा है- “आकाश, काल, जीव, धर्म और अधर्म द्रव्य अमूर्त हैं और पुद्गलद्रव्य मूर्त है; उनमें जीव वास्तव में चेतन है।" २. आचार्यश्री उमास्वामी ने तत्त्वार्थसूत्र के पाँचवें अध्याय के पाँचवें सूत्र

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