Book Title: Jin Dharm Vivechan
Author(s): Yashpal Jain, Rakesh Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 47
________________ जिनधर्म-विवेचन ९२. प्रश्न - आकाशद्रव्य को नहीं मानने से क्या हानि होती है ? उत्तर - जीवादि द्रव्यों को स्थान / अवगाहन देनेवाले आकाशद्रव्य को जो नहीं मानेंगे तो लौकिक व्यवहार में यह जीव स्वयं अन्य किसी को स्वयं स्थान देने का विकल्प करता हुआ वह मिथ्यात्व का पोषण करता रहेगा और आगम अर्थात् अनन्त तीर्थंकरादि ज्ञानियों का विरोध करने का महापाप होता रहेगा, मोक्षमार्ग दुर्लभ हो जाएगा तथा निगोद जाने का कार्य चलता रहेगा। ९२ कालद्रव्य का सामान्य स्वरूप ९३. प्रश्न - कालद्रव्य किसे कहते हैं? उत्तर – अपनी-अपनी अवस्थारूप से स्वयं परिणमते हुए जीवादिक द्रव्यों के परिणमन में जो निमित्त होता है उसे कालद्रव्य कहते हैं। जैसे, कुम्हार के चाक (चक्र) को घूमने में लोहे की कीली । ९४. प्रश्न- कालद्रव्य के कितने और कौन-कौन से भेद हैं? उत्तर - काल के दो भेद हैं- १. निश्चयकाल और २. व्यवहारकाल । लोकाकाश के प्रत्येक प्रदेश पर स्थित कालद्रव्य या कालाणु, निश्चय काल हैं और दिन, रात, महिना आदि व्यवहारकाल I तत्त्वार्थसूत्र के पाँचवें अध्याय, सूत्र २२ की सर्वार्थसिद्धि टीका में आचार्य पूज्यपाद लिखते हैं “१. ओदन - पाक - काल इत्यादि रूप से काल संज्ञा का अध्यारोप होता है, वह उस संज्ञा के निमित्तभूत मुख्य काल के अस्तित्व का ज्ञान कराता है; क्योंकि गौण या व्यवहार, मुख्य की अपेक्षा रखता है। २. परत्व और अपरत्व दो प्रकार का है क्षेत्रकृत और कालकृत । प्रकृत में कालकृत उपकार का प्रकरण है, इसलिए कालकृत परत्व और अपरत्व लिये गये हैं। ये सब वर्तनादिक उपकार, काल के अस्तित्व का ज्ञान कराते हैं। " ९५. प्रश्न- कालद्रव्य के सम्बन्ध में संक्षिप्त जानकारी दीजिए ? (47) कालद्रव्य - विवेचन उत्तर - कालद्रव्य का संक्षिप्त विवरण निम्नप्रकार है १. कालद्रव्य असंख्यात हैं। २. कालद्रव्य, रत्नों की राशि की तरह एक-दूसरे से पृथक् रहते हुए लोक के समस्त प्रदेशों पर अलग-अलग, एक-एक स्थित हैं। ३. प्रत्येक कालाणु जड़, एकप्रदेशी और अमूर्तिक है । ९३ ४. काल में स्पर्शगुण नहीं है; इसलिए एक-दूसरे के साथ मिलकर स्कन्धरूप नहीं होता । ५. काल में मुख्यरूप से या गौणरूप से प्रदेशसमूह की कल्पना नहीं हो सकती; इसलिए उसे अकाय भी कहते हैं। ६. वह निष्क्रिय है अर्थात् (कालद्रव्य) एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में नहीं जाता, उसका गमन नहीं होता। ९६. प्रश्न - असंख्यात कालद्रव्य मानने का क्या कारण है? उत्तर - तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक ग्रन्थ के पाँचवें अध्याय के १७वें सूत्र की टीका में आचार्य विद्यानन्दि कहते हैं - "कालद्रव्य अनेक हैं; क्योंकि एक ही समय में परस्पर विरुद्ध हो रहे अनेक द्रव्यों की क्रियाओं की उत्पत्ति में निमित्तकारण हैं अर्थात् कोई रोगी हो रहा है और कोई निरोग हो रहा है।" ९७. प्रश्न एक समयरूप व्यवहारकाल किसे कहते हैं और वह किस कारण से होता है? उत्तर – नियमसार गाथा ३१ की टीका में श्री पद्मप्रभमलधारी मुनि महाराज ने इसप्रकार कहा है- “एक आकाशप्रदेश में कोई परमाणु स्थित हो, उसे दूसरा परमाणु मन्दगति से लांघे; उतना काल वह समयरूप व्यवहारकाल है।” ९८. प्रश्न - कालद्रव्य को जानने से हमें क्या लाभ होता है? उत्तर - कालद्रव्य को जानने से हमें निम्न लाभ प्राप्त होते हैं१. कालद्रव्य के सम्बन्ध में प्रचलित अज्ञान का नाश होता है और सर्वज्ञकथित कालद्रव्य का ज्ञान होता है।

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