Book Title: Jin Dharm Vivechan
Author(s): Yashpal Jain, Rakesh Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 36
________________ ७० जिनधर्म-विवेचन द्रव्य-विवेचन जैसे, हम अपनी आँख को ऊपर अथवा नीचे से अंगुली द्वारा थोड़ा दबाते हैं तो सामने की वस्तु दो-दो दिखती है। यदि किसी कारणवश चक्कर आ जाए तो दुनिया घूम रही है - ऐसा लगता है। नींद में भी ज्ञान बहुत कम जानता है। समय पर अनुकूल भोजन-पान न मिले तो भी ज्ञान में हीनता आती है। परसों कौनसी सब्जी भोजन में ली थी, इसका भी हमें स्मरण नहीं रहता। डॉक्टर बेहोशी का इंजेक्शन देते हैं तो मनुष्य लकड़ी के समान अचेत जैसा होता है; इसी अवस्था में डॉक्टर लोग, मरीज का ऑपरेशन कर सकते हैं। ४० वर्ष के बाद चश्मे के बिना पढ़ना नहीं बनता और सूक्ष्म जीव भी नहीं दिखते । इसतरह अत्यन्त निकृष्ट ज्ञान द्वारा हम अलौकिक विषय कैसे जान सकते हैं? ४९. प्रश्न - ऐसी अवस्था में हम तत्त्वज्ञान की सूक्ष्मता या लोक में विद्यमान अद्भुत विषयों को जान ही नहीं सकेंगे? उत्तर – निराश होने की कुछ आवश्यकता नहीं है। हमारे पास भी कुछ विशिष्ट साधन हैं। जैसे - जिनेन्द्र भगवान, केवलज्ञान से सम्पूर्ण वस्तु-जगत् को स्पष्ट एवं पूर्ण जानते हैं; उसीतरह हम भी सम्पूर्ण वस्तुजगत् को किंचित् अल्पतासहित जान सकते हैं। ५०. प्रश्न - वह कौनसा उपाय अथवा साधन है? जिससे केवलज्ञान से ज्ञात विषयों को हम मनुष्य परोक्षतः जान सकते हैं? उत्तर - केवलज्ञान से ज्ञात विषयों को जानने का एकमात्र साधन जिनवाणी है, शास्त्र है। आचार्यों द्वारा रचित एवं विद्वानों द्वारा लिखित, या अनुवादित ग्रन्थ हैं। केवलज्ञानी अर्थात् सर्वज्ञ जिनेन्द्र भगवन्तों ने जो और जैसा जाना है, वैसा ही शास्त्रों में विषय लिखा गया है; इसलिए अपनी बुद्धि का भरोसा न रखते हुए शास्त्र के आधार से सूक्ष्म एवं आश्चर्यकारी विषयों को हम जान सकते हैं। केवलज्ञान ही जिनधर्म का मूल आधार है; यह स्वीकारना अति आवश्यक है। जो केवलज्ञान को नहीं मानेगा, उसे जिनधर्म समझ में नहीं आएगा और ऐसे अपात्रों को समझाने का व्यर्थ प्रयास भी नहीं करना चाहिए। ___ एकप्रदेशी कालाणु या परमाणु, असंख्यातप्रदेशी जीव-धर्मादि द्रव्यों तथा अनन्तप्रदेशी आकाशद्रव्य में अनन्त गुण हैं; इसका आधार केवलज्ञानी भगवन्तों द्वारा प्ररूपित जिनवाणी/शास्त्र ही है। इसप्रकार प्रत्येक द्रव्य में नियम से अनन्तगुण होते हैं -ऐसा हमें पक्का निर्णय हो जाना चाहिए। ५१. प्रश्न - यदि कोई मनुष्य एक ही गुण को द्रव्य मानेगा तो क्या आपत्ति आएगी? उत्तर - एक तो वस्तुस्वरूप से विपरीत ज्ञान होगा; क्योंकि किसी भी द्रव्य में मात्र एक ही गुण हो - ऐसा होता ही नहीं। दूसरी बात सर्वज्ञ भगवान के विरुद्ध मान्यता होगी, सर्वज्ञ भगवान की आज्ञा की अवहेलना होगी। ___ यदि एक गुण को एक द्रव्य मानेंगे तो एक द्रव्य में अनन्त द्रव्य मानना होगा; क्योंकि प्रत्येक द्रव्य में अनन्त गुण हैं - यह वास्तविक स्थिति है। ५२. प्रश्न - प्रत्येक द्रव्य में अनन्त गुण हैं, उस अनन्त का क्या स्वरूप है। उत्तर - इस विश्व में जीवद्रव्य अनन्त हैं, उनसे अनन्तगुने अधिक पुद्गलद्रव्य हैं, उनसे अनन्तगुने अधिक तीन काल के समय हैं, उनसे अनन्तगुने अधिक आकाश के प्रदेश हैं और उनसे भी अनन्तगुने अधिक एक द्रव्य में गुण होते रहते हैं। ___ संख्या सम्बन्धी कथन जीवकाण्ड गाथा ५८८ एवं ५९० में निम्नप्रकार आता है - जीवा अणंतसंखाणंतगुणा पुग्गला हु तत्तो दु। अर्थात् वहाँ द्रव्य प्रमाण से जीवद्रव्य अनन्त हैं; उनसे अनन्तगुने पुद्गल परमाणु हैं। 'ववहारो पुण कालो, पोग्गलदव्वादणंतगुणमेत्तो। तत्तो अणंतगुणिदा, आगासपदेसपरिसंखा ||५९०॥ (36)

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