Book Title: Jesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 517
________________ भंडार प्रथांक ........... .का ७२२ ......१६ ....२५ सर्व ग्रंथोंका अकारादिक्रम - परिशिष्ट १-४६९ |भंडार ग्रंथर्नु नाम कर्ता ग्रंथर्नु नाम ग्रंथांक | संवत । नाम कर्ता संख्या पत्र | नाम संख्या जि.का १४५९ |आवक आवश्यकसूत्र... ....१५३८ लो.का ३१४ भावकपाक्षिकातिधार ....... ....१७२७ १-११ त.का.८३२ श्रावककरणी सज्झाय... जि.ता. १६०/७ ० श्रावकप्रजाप्तिप्रकरण........... उमास्वाति बाचक ...........१३००/...५५-८० ९.का. १५८ श्रावककरणी स्वाध्याय ........... जिनहर्षगणि ........... जि.ता. १९१/४ ० श्रावकप्रज्ञप्तिप्रकरण ............. उमास्वाति वाचक ...........१४००/...३२-५८ डू.का. ११९९ श्रावककर्तव्य .... श्रावकप्रतिक्रमण वंदित्तु....... ...११६ लोका ४८२ आवककर्तव्य ....... सह बालावबोध हूं.का. ११६८ श्रावकगुण ................. .का. ९८८ श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र ...... ....................१६३६ जि.का. १६०५ श्रावकदिनकृत्याप्रकरण .... का. १३१ आवकप्रतिक्रमण सूत्र सह अवधूरि . जि.ता/१६१/२ ० श्रावकधर्मप्रकरण................जिनेश्वरसूरि .. .का, १३० श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र सह टमार्थ ............ले.१४०० जि.का १८८ श्रावकप्रतिक्रमणघूर्णी ........... विजयसिंहसूरि ...................... ३६-८४ जि.का ९७६ श्रावकधर्मप्रकरण................. जिनेश्वरसूरि ................१३१३ इं.का. ४२६ श्रावकप्रतिक्रमणवृत्ति ............-गुमानचंद ...................१९०४ जि.ता ४००/२ ० श्रावकधर्मविधितंत्रप्रकरण........हरिभद्रसूरि .... ...............१३००........८ जि.ता. १५८/ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र .... .................१४००/ जि.का १३१७/२ ० श्रावकधर्मविधितंत्रप्रकरण....... हरिभद्रसूरि. करण.......हारमधसूर......................... ... ३५-४२ त.का. १३२ आवकप्रतिक्रमणसूत्र ............पूर्वाचार्य ........................... |जि.का १३२६/५ ० श्रावकधर्मविधितंत्रप्रकरण....... हरिभद्रसूरि .. | त.का. ९९८ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र ...... जि.ता./१३६/२ ०भावकधर्मविधितंत्रप्रकरणवृत्ति .. ...........-.-९१-१४६ जि.ता. १५९/५ ०भावकातिक्रमणसूत्र (वंदित्तासूत्र). ........१३४५ १११-११७ जि.ता/१३६/३ ० श्रावकधर्मविधितंत्रप्रकरणवृत्ति मूल १४६-१५२ था.का २०७ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सह चूर्णि. जिनप्रभसूरि ............ जि.ता/१५६/१० 0 भावकधर्मविधितन्त्रप्रकरण...... हरिभद्रसूरि ............ ....११९२८... ४०-४८ जि.का २२२४ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रचूर्णि जि.ता/१५४/१६ ० श्रावकधर्मविधिप्रकरण........... श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति .. बूं.का. ५२७ श्रावकना २१ गुण सज्झाय .....-समयसुंदर जि.का/७४१ आवकप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति ... इं.का. १३७९ श्रावकपाक्षिक अतिचार ............... श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र ......... आ.का, २०५ श्रावकपाक्षिक अतिचार ........................ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र ....... त.का. १४५ भावकपाक्षिक अतिचार....................... १३३०/A श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र .... त.का. १३२८ आवकपाशिक अतिचार .......... आ.का.४० श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र लघुवृत्ति ..... तिलकाचार्य ...... डूं.का. ६५७ पाचकपाक्षिक अतिचार अपूर्ण.. त.का. १९ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सह टवार्थ -- आ.का.२५४ श्रावकपाक्षिकअतिचार ........ आ.का ७२ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सहवृत्ति...... ............१७८५ त.का. ७४५ श्रावकपाक्षिकअतिचार जि.का. १४६४ श्रावकप्राकृतअतिचार सस्तबक... त.का. १०३५ श्रावकपाक्षिकअतिचार .... त.का. १०५७ श्रावकपाक्षिक अतिचार लो.का ३८२ श्रावकपाक्षिकातिचार .... ..१७९५. .... १-५ जि.का १३३/४ श्रावकवक्तव्यता .ले.१९३० |जि.ता/१५६/१ ० श्रावकवक्तव्यता-घटस्थानकप्रकरण. जिनेश्वरसूरि .................११९ .......१२१०११-920 ....१७ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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