Book Title: Jesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 664
________________ पूज्यपाद १०५ वर्ष के संघस्थविर आचार्य देव श्री १००८ विजयसिद्रिसूरीश्वरजी महाराज के पट्टालंकार पूज्यपाद आचार्य देव श्री विजय मेषसूरीश्वरजी महाराज के शिष्य पूज्य मुनिराज श्री भुवनविजयजी महाराज ने विक्रम संवत् १९८८ में जैन दीक्षा ग्रहण की थी। उन्हीं के सांसारिक संबन्ध से पुत्र एवं श्रमण जीवन में शिष्य मुनिराज श्री जंबूविजयजी महाराज हैं। इनकी सांसारिक माता ने भी जैन दीक्षा ग्रहण की थी। उनका नाम साध्वीजी मनोहर श्रीजी था। १०० वर्ष की आयुष्य समाप्त कर सं० २०५१ में श्री सिद्ध क्षेत्र पालिताणा में उन का स्वर्गवास हुआ था। प०पू० मुनिराज श्री जंबूविजयजी महाराज ने मात्र १४ साल की बाल उम्र में जैन श्रमण दीक्षा ग्रहण की। आज दीक्षा जीवन का ६३ वाँसाल चल रहा है। इतनी लम्बी उम्र से अनेक शास्त्रों का अध्ययन-अध्यापन, संशोधन तथा संपादन का कार्य करते आए है। षड् दर्शन और न्याय का आपने अध्ययन किया है। आप अनेक भाषाओं के ज्ञाता हैं। पांडुलिपियों से संशोधन, संपादन करना आपके जीवन का मुख्य विषय बन गया है। द्वादशारनयचक्र नाम के ग्रंथ पर आपने तीस साल तक कार्य किया। इस ग्रंथ के माध्यम से आपकी प्रसिद्धि विश्व में चारों ओर फैल गई। परदेश से भी अनेक स्कॉलर्स, प्रोफेसर्स आपके पास पढ़ने हेतु आते रहते हैं। जीवदया और सहधर्मियों को सहाय, ये दो परोपकार के कार्यों को आप प्राधान्य देते हैं। in Education International For Private & Personal use only www.aamoheron.ca

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