Book Title: Jesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 662
________________ ६१४ - प्राचीन अंकमाला के वर्ण - परिशिष्ट १४ उदा० १.हम प्राचीन वर्णमाला में निम्नोक्त तरीके से लिखे गये सांकेतिक वणों को इस तरह पढेंगे - खः..............शतक स्थान ..........७ & ............ दशक स्थान ..........५ ६..............एकम स्थान .......... ८ ७ ५८ उदा० २ . हम प्राचीन वर्णमाला में निम्नोक्त तरीके से लिखे गये सांकेतिक वो को इस तरह पढ़ेंगे - शु दशक स्थान ६ ह एकम स्थान ५ जौहरीमलजी पारख' के सूचीपत्र से उद्धृत - प्राचीन वर्णमाला के वर्ण १ से १०० तक । ।। 1 । । । । । । । पाललाप्र१ ६१ ] 2|२|ल ३२२ २६२२१२२३२] ३३३ ला३५३६३३१३३३३ - [कल/कलाकाप्रधधधाक Ek jalors || •[फ्रालय font o fe[] सीलग्री घना लाप्राहमा थुनामा 984 ही लिहाहाहाहाहीही काही | पुलवधालाउप्रयाबुलाला ] 95 101XIA . 100 10 20 30 40 5060 70 80 90 100 - ६५ इस तरह प्राचीन अंक पढ़ सकते है । उदा०३. प्राधीन वर्ण सिर्फ 'का' ऐसा लिखा हो तो यह एकम स्थानीय ६ अंक है। इस तरह प्राचीन वर्ण लिख या पढ़ सकते है । ||१. विस्तृत जानकारी संकेत सूची से प्राप्त करें । Jain Education International For Private &Personal Use Only www.jainelibrary.org

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