Book Title: Jesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 661
________________ प्राचीन अंकमाला के वर्ण - परिशिष्ट १४ - ६१३ ('ज्ञानांजलि के पृष्ठ ४९ से निम्न तीन प्राचीन वर्णमाला के कोष्टक उद्धृत किये है) . परिशिष्ट १४ : प्राचीन अंकमाला के वर्ण सेभ ी (एकम स्थानीय वर्ण) " Is ta (दशम स्थानीय वर्ण) १% १,,,,,श्री.थी १ = ल, लें. २ = २,न, सि, सि.श्री.श्री २% ध, घा. ३ ल, ला. ३% ३,मः, श्री, बोयो. ४% प्ल, प्त, प्ता,ता. ४- कक, क, का, फँ, को, क,का,,का, v. 4- C, G6.६,. ५-कई ,,20,ठ, न,ना,वा,वी,वा,वी. ६. फ,,फा,,,,का,फ्रो,ऊ,ऊ,कु. र. ७-याये, या,या 63,ई,झा,को,v. ए-8,3,3,8 ए उँ, . RAGMCHAN Aria (शतक स्थानीय वर्ण) १- सु, से. २% सस्त,स. ३% क्षा, सा,या. ४- स्नासा,मा. 4% स्नोमोसो. ६% , तं, सं. -नः,सः,मः. उपरोक्त कोष्टक में एकम अंक, दशक अंक और शतक अंकों को पृथक् पृथक् बताने का | प्राचीन ताडपत्री या कागज के ग्रंथों में सांकेतिक पत्र क्रमांक निम्नोक्त तरीके से (उपरसे नीचे | कारण इतना ही है की, एक, दो, तीन आदि ९ तक की एकम स्थान की संख्या पढ़नी हो तो के क्रम से) लिखा जाता था। एकम अंकों के कोष्टक में दीये गये १,२,३ आदि लिखें या पढ़ें । दस, बीस, तीस आदि ९९ तक प्राचीनलिपि अर्वाचीन वर्णमाला की संख्या पढनी हो तो दशम स्थानीय अंक दशक अंकों के कोष्टक में लिखे हुए एक, दो, तीन ............ शतक स्थान .......... १ आदि का प्रयोग करें या पढें । और १००, २००, ३०० आदि ७९९ तक के अंक पढना हो तो शतक स्थानीय अंक शतक कोष्टक में लिखे गये एक, दो, तीन आदि को लिखें या पढ़ें । हस्तलिखित .... ............... दशम स्थान ........... ४ प्रतियों में बहुधा ८०० से ज्यादा पन्ने नहीं होते इसलिए इस से ज्यादा क्रमांक नहिं दिये । .... ............... एकम स्थान ...........४ - १४४ १. पू.पं. रमणिकविजयजीमहाराज आदि द्वारा संपादित सागरगच्छ जैन उपाश्य, वडोदरा द्वारा प्रकाशित 'ज्ञानांजलि पू. मुनि श्री पुण्यविजयजीमहारान अभिवादन ग्रंथ' से उद्धृत । (प्राप्तिस्थान : श्री महावीर जैन विद्यालय, गोवालिया टैंक रोड, मुंबई-२६.) Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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