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५८४ - विशिष्ट प्रतियाँ - परिशिष्ट १२
वीरजिन का उत्तुंग मंदिर बनवाया था । देखो जि.ता.ग्रंथांक २१७ उपरोक्त जैसलमेर के |
पार्श्वजिनमंदिर को बनवाने वाले श्री अगडूर शेठ के ये भुवनपाल शेठ पुत्र थे । (५) श्री गोल्ल नामके श्रेष्ठी ने मरुकोह में श्री चन्द्रप्रमजिन का उत्तुंग मंदिर बनवाया था ।
देखो जि.ता. ग्रंथांक ३१२ लवणखेट में श्री शान्तिनाथजिनमंदिर बनवाने की नोंध मिलती है । देखो जि.ता.ग्रंथांक ११२ और ११४ श्री ब्रहादेव नाम के श्रेष्ठी ने श्रीमंट (?) जिनेशमंदिर में श्री वीरदेवगृह करवाया था । देखो जि.ता. ग्रंथांक २३२ क्षेमंघर श्रेष्ठी ने अजमेर में श्री पार्श्वजिनमंदिर में भव्य मंडप बनवाया था । देखो जि.ता. ग्रंथांक ११२. २७० तथा २७२ । आवश्यकवृत्ति प्रथमखंड (जि.ता, ग्रंथांक ११२) लिखवाने वाले की प्रशस्ति में भीमदेव नाम के शेठ को कर्मग्रन्थविचार में अतिनिपुण और धर्मक्रियानिष्ठ बताये है ।
ये गये श्री उदयराज-बलिराज के दादा हाजी शेठ ने श्री जिनचंद्रसरि की आचार्यपदवी का महोत्सव कीया था । देखो जि.ता. ग्रंथांक ११९ ।।
इसके अतिरिक्त अनेक श्रेष्ठीयों ने तीर्थयात्रा-संघ, आवश्यक-पूजादिकार्य, उपधानतप, उजमणा.' साधर्मिकभक्ति आदि धर्मकार्योंकी नोंद भी इन प्रशस्तियों में की गई है।
ग्रंथ लिखवाने वालों की प्रशस्ति-पुष्पिकाओं में अणहिलपुर पतन, स्तम्भतीर्थ, भृगुकच्छ, धवलक्रांक (घोळका) वडउद (वडोदरा) आदि अनेक सुख्यात प्राचीन नगरों के नाम अनेक स्थानों पर मिलते है और उसके अतिरिक्त अन्य भी गांव नगरों के नाम मिलते है । उसमें से कितनेक नाम जिस संवत् में नोंदे गये है, वे संवत् के साथ बताता हूँ ।
कांसा, सं.१२६० (जि.ता, ग्रंथांक २३३) अणहिलपुर पत्तन के विषयपथक में आया हुआ गांव, जो आज भी कासा नाम से ही पहचाना जाता है ।
कुमारपल्ली, सं, १२०७ - आज से लगभग पांचसौ सालके पहले के रचित रास आदि में जो कुमरगिरि नाम का गांव उल्लिखित हुआ है वही यह कुमारपल्ली होगा ऐसा लगता है । आज यह गांव पाटण (गुजरात) से पांच मील दूर आया हुआ है और वह कुणघेर नाम से पहचाना जाता है । कुमारपाल के नाम की स्मृति स्थायी करने के लिये यह गांव बसा था । इ.स. १२०० में यह प्रति (जि.ता. ग्रंथांक २३५) लिखवाने वाले के पिता ने कुमारपल्ली में श्री बीरजिन का चतुर्मुखप्रासाद बनवाया था. इससे जान सकते है की, कुमारपाल के राज्य के प्रारंभ में ही यह गांव बसा था । । कुमारपाल का राज्यारोह वि.सं. ११९९ वे में हुआ था ।
पालउद्र, सं.१२२७ महेसाणा (उ.गु.) के पास का पालोदर गांव । इस गांव को विषयदंडराज्य'। पथक में बताया है । देखो जि.ता. ग्रंथांक २३७
कटुकासन, सं. १२२७ - महेसाणा --विरमगाम के रेलमार्ग पर आया हुआ कटोसण | देखो जि.ता.ग्रंथांक २३७
बदरसिद्धस्थान, चतुरोत्तरमंडलकरणमध्यस्थित सं १३३९ चरोतर प्रदेश में आया हुआ बोरसद । देखो जिता, प्र.२१०
आशापल्ली, आशावल्ली - सं. १२२३ -अमदावाद के पास असारवां । देखो जि.ता. अं.२१७ पद्रउर, पद्र, पद्रगाम, - सं. १२४० वडोदरा के पास पादरा । देखो जिता. ग्रं.२३२ ऊमता, सं. ११९८ विसनगर (उ.गु.) के पास ऊमता । देखो जिता. गं.४०६ वासप्पय, वासव - सं, १२४० वडोदरा के पास चासद । देखो जिता, अं.२३२ मंडली- सं. १२१८ और १२२६ वीरमगाम के पास मांडल । देखो जिता. अं.७६ और ३०१ गंभूयपुरी सं. १२१६ गांभू (उत्तर गुजरात) जिता. ग्रं.२५९ पंचासर' सं. १२१६ मांडल के पास पंचासर जिताग्रं.२५९ संडथल सं.१२१६ जिता ग्रं.२५९ चड्ढावली सं. १२१६ जिता.ग्रं.२५९ . छत्तावल्लिपुरी, सं. ११२५ जिता. ग्रं. २३५ छत्रापल्ली . सं.१३०४ जिता. पं. २५६ मूलनारायणदेवीयमठ, सं. १२०० जिता.प्र.३९१ शेरिंडक, सं. १२२३ जि.ता.अं.२१७ धारापुरी, सं. १२९५ जि.ता.नं.२८१ नलकच्छपुर, सं.१२९५ जि.ता..२८१ मण्डपदुर्ग, सं.१२९५ जि.ता.अं.२८१. सं १३०८. जिता.अं.२८६
बाहुपुर - मठस्थानक, सं.१३८४ जि .का.पं.१९७९ . मडाहड, सं, १२१३ जिता.अं.१५५/८
उपरोक्त उदाहरण रुप बताये गये गांव-नगरों में से जो नाम लेखक की प्रशस्तियों में से है उनमें से बहुत से नाम गुजरात के है । उससे और खंभात निवासी परीख धरणाशाह एवं उदयराजबलिराज के ग्रंथो को देखकर यह कहा जा सकता है की जैसलमेर के प्रस्तत ताडपत्रीय ज्ञानभंडार के स्थापक आचार्यप्रवर का उपासकवर्ग गुजरात में विपल प्रमाण में था और वह धर्मशील, समृद्ध
१ थी६.ये छह भाम ग्रंथकार की प्रशस्ति में से लिखे है ।
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