Book Title: Jeev Vichar
Author(s): Narvahanvijay
Publisher: Narvahanvijay

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Page 192
________________ નથી. જૈન સમાજમાં વિજ્ઞાન, પુરાતત્વ, ભૂસ્તરજ્ઞાન વગેરેનો જાણકાર વર્ગ ઊભો થાય તો જગતની સામે આવાં અનેક સત્યો રજૂ કરશે એ નિર્વિવાદ વસ્તુ છે. परिशिष्ट- २ जीवायुप्पमाणकुलयं मणुआण विसोत्तरसयं, सयं सिंह-काग-गय-हंसा ।। कच्छ-मच्छ-मयरसहस्सं, सयमाउं गिद्वपक्खीणं ।।१।। चडलिय-सारस-सूअर-आइ जीवाण पन्नासं । वग्धाणं चउवीसं, सट्ठी बग-कोंच-कुक्कडगं ।।२।। सारंगाण तीसं, सुअ-सुणह-विलाड-वारसगं । भिग-जंबुग-चउवीसं, गो-महीसि-उंट-पणवीसं ।।३।। गंडस्स वीसवरिसं, सोलस अज-गडरियाणं च । ससगं च चउदसगं, वासदुगं मुसगस्साङ ।।४।। सरड-गिह-गोह-कीडग, वरिसदुगं जुआ य कं सारी । मासतिगं च वीययपंखी, अहिआउं जिणे सरदि8 ।।५।। संवत् १७२९ आश्विनधवलपक्षे सरवडीग्रामे लि. जिनविनयमुनिना । मनूष्यका १२० वर्षका; सिंह, काक, हाथी, हंस आदि का १०० वर्षका; कच्छप, मकर आदि का १००० वर्षका; गृद्वपक्षीका १०० वर्षका; चिडिया, सारस, सूकर, आदि का ५० वर्षका; व्याघ्र का २४ वर्षका; बगुला, कौंच, कुकडा (मा) आदि का ६० वर्षका; सारंग (मयूर) का ३० वर्षका; तोता, कुत्ता, बिलाव आदि का १२ वर्षका; हिरण, श्रृंगाल आदि का २४ वर्षका; गो, भै स, उंट आदि का २५ वर्षका; गैंडा का बीस वर्षका; वकरा, भेड आदि का १६ वर्षका; शराक (सुसलिया) का १४ वर्षका; उदरका २ वर्षका, गिरगट, गृहगो वा Page 192 of 234

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