Book Title: Jainagama Nirdeshika
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 12
________________ लिए। आचारांग का सातवां महापरिज्ञा अध्ययन और दसवाँ प्रश्नव्याकरण अंग पूर्ण टीकाकारों के युग में भी उपलब्ध नहीं थे। आगमों के लेखनकाल में संकलित नन्दीसूत्र में जिन कालिक और उत्कालिक सूत्रों की एक लम्बी सूची अंकित है, उनमें से अनेक आगम वर्तमान में अनुपलब्ध हैं। ये आगम कब और कैसे अदृष्ट हुए, इस सम्बन्ध में पूर्ण विवरण प्रस्तुत करने का साधन हमारे पास नहीं है। प्राकृतिक विपदाओं से जिन-वाणी की सुरक्षा का उत्तरदायित्वअधिष्ठायक देव-देवियों का है। किन्तु ह्रास-काल के प्रभाव से कहिए या हमारे दुर्भाग्य से कहिए वे भी आगम-सुरक्षा से सर्वथा उदासीन रहे। फिर भी जेसलमेर पाटण आदि के विशाल ज्ञान भण्डार में प्रचुर अमूल्य आगम-निधि सुरक्षित है। जिनवाणी प्रेमी जिज्ञासु जन उनके संस्थापकों एवं संरक्षकों के सदैव आभारी रहेंगे। स्वाध्याय-साधना आगम-निधि की सुरक्षा के लिए स्वाध्याय की प्रवृत्ति बढ़ाना अत्यावश्यक है और इसके लिए एक व्यापक कार्यक्रम को आवश्यकता है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य सर्वसाधारण के लिए जैनागमों का महत्व समझाना तथा जन साधारण को जैनागमों के स्वाध्याय के लिए प्रोत्साहित करना है । इस कार्यक्रम के तीन प्रमुख अंग हैं : १ चतुर्विध संघ में जैनागमों के स्वाध्याय की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना। २ जैनागमों का वैज्ञानिक पद्धति से लोकप्रिय प्रकाशन । १ स्थानांग में वर्णित प्रश्नव्याकरण के स्वरूप से उपलब्ध प्रश्नव्याकरण का स्वरूप सर्वथा भिन्न है। २ बन्ध दशा, द्विगृद्धि दशा आदि अनेक प्रकीर्णक ग्रन्थ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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