Book Title: Jain Yuga Nirmata
Author(s): Mulchandra Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ ( ६ ) दृष्टिकोणमें मतभेद हो सकता है लेकिन उस समयकी परिस्थितिको साम्हने रखकर तुलना करनेवालोंको यह सब जंचेगा । आदिकी ५ कथाएं कर्मयोगी ऋषभदेव, जयकुमार, सम्राट् भरत, श्रेयांसकुमार और बाहुबलि इनमें भारतकी आदि कर्मभूमिकी प्रवृति मिहंगी, और अन्य कथाओं में आत्म त्याग, सहनशीलता, वीरत्व, आत्मस्वातंत्र्य और पवित्र आत्मदर्शनकी छंटा दिग्दर्शित होगीं । प्रत्येक युगका संक्रान्ति समय महत्व पूर्ण हुआ करता है । उस समय पुरानी सृष्टिके अंतकें साथ नई सृष्टिका सृजन होता हैं । वह सृष्टि ही आगेकी रचनाके लिये आधारभूत हुआ करती है । उम समयकी परिस्थितिको काबू में रखना, उद्वेलित जनताको तोप देना और उसका मार्ग प्रदर्शन करना अत्यंत महत्वशाली होता है। यह कार्य महानतर व्यक्ति द्वारा ही पूर्ण होती हैं । परिस्थितिको सम्हालने का चातुर्य, महत्व और ज्ञानवैभव किन्हीं विरले पुरुषोंमें हुआ करता है । दिग्द और अव्यवस्थित जनताका मार्ग प्रदर्शन साधारण महत्वका कार्य नहीं हैं, ऐसे महाँ संकटके समय में जिन महापुरुषों पूथ प्रदर्शकका कार्य किया है वे हमारी श्रद्धा और आदरके पात्र हैं। प्राचीन इतिहास में उनका गौरवमय स्थान हैं। उन्हें अपनी श्रद्धांजलियां समर्पित करना हमारा कर्तव्य हैं । 1 आजकै विकासंवादकें युगमें जथं कि भौतिकविज्ञान आत्मविज्ञानका स्थान ले रहा है, त्याग और आत्मसंतोषकी यह कथाएँ नया जीवन और शांति दे सकेंगी। भोगवाद और इन्द्रिय विलासमें जीवनकी सफलता माननेवालोंके साम्हने आत्म प्रकाशका यह प्रदर्शन सफल हो सकेंगी अथवा नहीं इन सन्देह हम नहीं पड़ना चाहते। हमें तो जनतर्कि सान्देन महीपुर महा

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 180