Book Title: Jain Yuga Nirmata
Author(s): Mulchandra Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 9
________________ - प्रस्तावना। . उस पुराने युगकी यह कथाएं हैं जब हमारी सभ्यता विकासके गर्भमें थी। तब भोग युगके महासागरसे कर्मयुगकी तरंगें किस मृदुगतिसे प्रवाहित हुयीं, कर्मयुगके आदिसे मानव सभ्यताका विकास किस तरह हुआ ? रीति रिवाजोंकी आवश्यक्ता कब और क्यों हुई, उसकी उत्पत्ति और वृद्धि किन साधनोंसे हुई, इन सबका मनोरंजक पणन इन कथाओं द्वारा किया गया है। प्राचीन भारतीय सभ्यताकी प्रारंभिक स्थिति क्या थी ? प्राचीन भारतीय किस दिशामें थे ? उनका अन्तिम आदर्श क्या था? आत्म विकासके लिए उनके हृदयमें कितना स्थान था, ये कथाएं यह सब रहस्य उद्घाटित करेंगी। इन कथाओंमें उन चित्रोंके दर्शन होंगे जिनके बिना हमारी सभ्यताके विकासका चित्रपट अधूरा रह जाता है । ये कथाएं केवल मनोरंजन मात्र नहीं हैं, किन्तु प्राचीन युगके प्रारंभ कालकी इन कथाओंको पढ़नेपर पाठकोंको इसमें और भी कुछ मिलेगा। इसमें सभ्यताके मूल बीज मिलेंगे और भारतीयोंका अतीत गौरव, महान त्याग और आत्मोत्सर्गकी पुण्यः स्मृतियां प्राप्त होंगी। • इन कथाओं द्वारा प्राचीन मान्यताओंको प्राचीन कथानकोंमेंसे निकालकर, उन्हें मौलिक रूपमें जनताके साम्हने रखनेका थोड़ासा प्रयत्न किया गया है। इसमें वर्णित मान्यताओं और महत्वके

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