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जाकिनी धर्मपुत्रस्य श्रीहरिभद्र कृता कथा। उपसर्ग हरस्तोत्र व्याख्यान दय मुध्धे ॥६५॥
इतिश्री उपसर्गहर स्तव प्रबन्ध समाप्त:. आचार्य भद्रबाहु और हरिभद्र जैसे प्रसिद्ध और उल्लेखनीय ग्रंथकारों की भी बहुत-सी रचनाएं अप्राप्त हो गयी हैं। कुछ का तो मध्यकालीन साहित्य में उल्लेख भी मिलता है। किसी-किसी रचना का तो उद्धरण भी पाया जाता है। फिर भी उनकी प्रतियां प्राप्त नहीं होतीं। अभी तक बहुत से जैन ज्ञान भंडार अज्ञात अवस्था में पड़े हैं। कई व्यक्तिगत आचार्यों, मुनियों आदि की देखरेख में हैं। उनकी आज्ञा के बिना उन्हें देखा नहीं जा सकता। ऐसे ज्ञान भंडारों में कई ऐसी प्रतियां भी मिल जाती हैं, जिनमें लिखे हुए ग्रंथ अन्यत्र कहीं भी नहीं मिलते। अर्थात् कुछ रचनाओं की प्रतिलिपियां अधिक नहीं हुई । एक-दो ही प्रतियां बची रह गई। वे उन ग्रंथ भंडारों के अतिरिक्त कहीं मिलती नहीं। कई गंध भंडारों की विवरणात्मक सूचियां नहीं बनी। पुरानी ढंग की सूचियां ही मिलती हैं, जिनमें ग्रंथ का नाम और पत्र संख्या ही लिखी रहती है, रचयिता का नाम नहीं लिखा रहता। और एक ही नाम वाले ग्रंथ कई ग्रंथकारों के बनाये हुए पाये जाते हैं। अतः अज्ञात ग्रंथकार और उनकी रचनाओं का पता लगाना बहुत ही मुश्किल होता है।
आचार्य भद्रबाहु और हरिभद्र की अज्ञात रचनाएं : १११