Book Title: Jain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Author(s): Ramchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 178
________________ नगर का यह यात्री बड़ा ही सरस वर्णन करता है। इस नगर में उसने अनेक जैन मंदिर, जैन मूर्तियां, हस्तलिखित ग्रंथ संग्रह देखे और जैन मुनि के दर्शन किये। सुरत से प्रकाशित दिगम्बर जैन तीर्थमाला में तारातंबोल में किसी 'जवला-गवला' नामक शास्त्र की विद्यमानता की सूचना पासिंह के वर्णन में हस्तलिखित ग्रंथों के विद्यमान होने की पुष्टि करती है। बुलाकीदास द्वारा प्रस्तुत किया गया तारातंबोल का वर्णन भी बड़ा ही सजीव है। वह लिखता है कि वहां का बादशाह हिन्दू है और जैन धर्मावलम्बी है। उसका नाम चंद्र सूर, चंद्रसूर या सूर चन्द्र है। वहां जैनियों के मंदिर सोने और चांदी के वने हैं । मूर्तियां रत्नों से जटित हैं। राजा के साथ प्रजा भी जैन धर्म को मानने वाली है तथा यह नगर सिंधु-सागर नाम की नदी के किनारे पर स्थित है। इसी के अन्य संस्करण में तारातंबोल के आस-पास स्थित मंदिरों की संख्या ७०० दी गई है तथा शहर के मध्य में आदीश्वरजी के विशाल मंदिर के स्थित होने की बात कही गई है, जिसमें १०८ जड़ाव की मूर्तियां थीं, प्रतिमाओं की वेदियां स्वर्णजटित थीं, आदीश्वरजी का सिंहासन भी जड़ाऊ था। मंदिर में ७०० मन सोने की ईंटों का उपयोग किया गया था तथा इस मंदिर में त्रिकाल पूजा होती थी। शीलविजय भी तारातंबोल का लगभग ऐसा ही वर्णन करता है। वह राजा के अनूपचन्द्र और त्रिलोकचन्द्र नाम के दो पुत्रों का भी उल्लेख करता है, तथा तारातंबोल में ३०० शिवालयों की विद्यमानता की भी सूचना देता है। इन सभी वर्णनों में यात्रा-मार्ग में पड़ने वाले अनेक नगरों के बाजारों, राजमहलों, राजव्यवस्था आदि का भी वर्णन मिलता है, पर उन पर प्रकाश डालना इस समय हमारा उद्देश्य नहीं है। ___ इन यात्रा-विवरणों में वर्णित अनेक नगरों के नामों से हम सभी परिचित हैं। काबुल, कंधार, इस्फहान, खुरासान और इस्तंबूल के नाम हमने सुने हैं । इस्फहान के क्रम में ही उल्लिखित सारस्नान नगर सीरस्तान प्रतीत होता है। बुलाकीदास के वर्णन को देखते हुए यह स्पष्ट हो जाता है कि पद्मसिंह ने इस्फहान को ही आशापुरी नाम दिया है। पद्मसिंह विस्मृति के कारण या लेखन-त्वरा में इस्तंबूल का नाम भी तारातंबोल दे गया है । यह भ्रम इस्तंबूल के भी तंबूलान्तक नाम होने के कारण हुआ प्रतीत होता है। बुलाकीदास ने इस्तंबूल से आगे ५०० कोस पर बब्बर देश या बाबर नगर का नामोल्लेख किया है। शीलविजय उसे बबरकल कहता है। वह लिखता है, "बबरकूल वशि पांचसे, पवन राज ईहा सुधि बसे'.... अर्थात् इस्तंबूल से पांच सौ कोस दूर बबरकूल है जहां पवनराज का भी निवास है। यह वर्णन बेबिलोनिया के उन मूल पुरुषों की याद दिलाता है जो मतु या मर्तु (वैदिक मरुत) नाम के सोवियत गणराज्य और पश्चिम एशियाई देशों में जैन-तीर्थ : १७१

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