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सम्प्रदाय को राज्याश्रय प्रदान करने का उल्लेख है । एक दिगंबर आचार्यश्री कीर्ति का नाम मिलता है जो नेमिनाथ की यात्रा पर जाते समय पाटन में रुके थे और वहां के राजा ने इन्हें मंडलाचार्य का विरुद तथा सुखासन भेंट किया । अपभ्रंश कथा - कोश के रचयिता श्रीचंद्र ने अपनी गुरु-परंपरा में भी कीर्ति का उल्लेख किया है, जिनके शिष्य आचार्य क्षुतिकीर्ति चित्तौड़ के परमार राजा भोज की राजसभा के सम्मानित सदस्य थे । कांटसंघ ताल बागड़ के पुल्लाट गच्छ में महेंद्रसेन नामक आचार्य का उल्लेख मिलता है, जिसने 'त्रिशष्टिशलाका पुरुषचरित' नामक ग्रंथ की रचना की । वि० सं० १२०७ की चित्तौड़ की कुमारपाल की प्रशस्ति का रचयिता रामकीर्ति दिगंबर साधु था । ग्यारहवीं शताब्दी में आशाधर नामक मांडलगढ़ निवासी बहुत बड़े दिगंबर पंडित हुए जो मुस्लिम आक्रमणों के समय दक्षिण की ओर चले गये ।
धर्म-प्रचारक साहित्यानुरागी श्रावक - लल्लिंग, जिसने हरिभद्र सूरि के कई ग्रंथों का आलेखन कराया । आशाधर श्रावक बहुत बड़े विद्वान् थे । लोल्लाक श्रावक ने विजोलिया में उन्नत शिखर पुराण खुदवाया । धरणाशाह ने जिवाभिगम, सूत्रावली, ओघ निर्युक्ति सटीक, सूर्य प्रज्ञप्ति, सटीक अंग विद्या, कल्प भाष्य एवं सिद्धान्त विषम पद पर्य्यय व छंदोनुशासन की टीका करवायी । चित्तौड़ निवासी श्रावक आशा ने 'कर्मस्तव विपाक' लिखा । डूंगरसिंह ( श्रीकरण )
आड़ में 'ओ नियुक्ति' पुस्तिका लिखी । 'उद्धरसुनुतम हेमचंद्रेण ने दशवकालिक पाक्षिकसूत्र' व ओघनियुक्ति लिखी । वयजल ने आयड़ में पाक्षिक वृत्ति लिखी ।
आधुनिक जैन विभूतियां - यहां जैन लोगों ने इतिहास के निर्माण में भी बड़ी सही भूमिका निभाई । राजपूताना के मुणहोत नेण सि के साथ कर्नल टाड के गुरु यति ज्ञानचंद, नैणसी के इतिहास के अनुवादक बा० रामनारायण दुगड़ व मेहता पृथ्वीसिंह का नाम इतिहासज्ञों में उल्लेखनीय है तो अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुरातत्ववेत्ता मुनि जिनविजय जी ने ऐतिहासिक सत्यों-तथ्यों के संग्रह से इतिहास की मूल्यों का सुरक्षात्मक भंडारण कर शोधार्थियों के लिए वरदानस्वरूप महान कार्य किया। आपको गांधीजी ने साग्रह गुजरात विद्यापीठ का प्रथम कुलपति बनाया। आप जर्मन अकादमी के अकेले भारतीय फैलो हैं । आपकी सेवाओं के उपलक्ष्य में आपको राष्ट्रपतिजी ने पद्मश्री प्रदान कर समादृत किया । विज्ञान के क्षेत्र में श्री दौलतसिंह कोठारी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक हैं । आपने स्वेच्छा से भारत के शिक्षामंत्री का पद नहीं स्वीकार किया। आप भारत की सैनिक अकादमी के प्रथम अध्यक्ष बनाए गये और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष पद से आपने अवकाश प्राप्त किया। आपको राष्ट्रपतिजी ने पद्मविभूषण प्रदान कर समादृत किया। डॉ० मोहनसिंह मेहता को भी विदेशों में भारतीय प्रशासनिक सेवा व शिक्षा में सेवाओं के उपलक्ष में पद्मविभूषण से
मेवाड़ में जैन धर्म : १९५