Book Title: Jain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Author(s): Ramchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 179
________________ I वायु देवता के पूजक थे । ' शीलविजय का बब्बरकूल स्थित पवनराज की बैंबलोनिया का 'मरुत' देवता की स्थापना से प्रतीत होता है कि यह बब्बरकूल बैबलोनिया ही होना चाहिए। यहां के निवासी भारत से निकले पणि और चोल ही माने जाते हैं । बँबिलोनिया सीरिया के दक्षिण, फारस के पश्चिम और अरब के उत्तर में स्थित प्रदेश है । पर यात्रा मार्ग के अन्य नगरों को देखते हुए प्रतीत होता है कि कैस्पियन सागर के दक्षिणी तट पर बसे बाबुल को ही बावर, बब्बर या बब्बरकूल कहा गया होगा । पद्मसिंह ने अजितनाथ के मंदिर की दूरी इस्तंबूल से उतनी ही बताई है जितनी बुलाकी ने बाबर की, अतः अनुमान लगाया जा सकता है। कि वह मूर्ति बाबर में ही रही होगी। तलंगपुर की स्थिति कहां रही होगी, निश्चित रूप से कुछ कह सकना कठिन है । तलंग या तिलंग शब्द उन हूणों और तुर्कों के लिए प्रयुक्त शब्द है जो गोबी के रेगिस्तान, इस्सिकुल और सिर दरिया के ऊंचे पहियों की गाड़ी रखते थे । चीनी लेखकों ने इन्हें ही चीलेहीले या चिरके लिखा है । इसी से तेरेक और तुर्क शब्दों की भी उत्पत्ति हुई है।' यह शब्द सातवीं शती fore तो प्रचलित था ही । वुलाकी ने इस्फहान में और शीलविजय ने इस्तंबूल में इसी जाति का राज्य होना बताया है । अतः प्रतीत होता है सिर दरिया के किनारे ताशकंद से थोड़ा उत्तर में वसा तुर्कीस्तान ही पद्मसिंह का तलंगपुर हो सकता है। पद्मसिंह तलंगपुर या तुर्कीस्तान से नवापुरी पट्टण जाता है । नगर के अंत में पट्टन शब्द के प्रयोग से प्रतीत होता है कि यह कोई नदी या समुद्र के किनारे स्थित व्यापारिक नगर था । तुर्कीस्तान और नवापुरी के मध्य में वह चन्द्रप्रभु तीर्थ भी जाता है। इसकी स्थिति कहां रही होगी, कह पाना कठिन है, पर नवापुरी पट्टन ओब नदी की खाड़ी में बसा नोवा पोर्ट ही प्रतीत होता है, जिसकी स्थिति चन्द्राप्रभुजी से ७०० कोस कही गई है। तारातंबोल नवापुरी पट्टन से ३०० कोस दूर कहा गया है । वास्तव में तारातंबोल किसी एक नगर का नाम नहीं है । ये इतिश नदी के किनारे बसे तारा और तोबोलस्क नाम के दो नगर हैं । तारा इर्तिश और इशिम के संगम पर बसा है और तोबोलस्क इतिश और तोबोल के संगम पर। इन दो नगरों के मध्य की दूरी बहुत अधिक नहीं है, इसी से इनके नामों का प्रयोग एकदूसरे की पहचान के लिए साथ-साथ किया गया है, जो एक सामान्य प्रथा रही है । बुलाकीदास, शीलविजय आदि इसे सिंधु सागर नदी पर स्थित बताते हैं । संभवतः इर्तिश को ही सिंधु सागर कहा है । संभवतः इतिश और भारतीय सिंधु नदी के रूसी उच्चारण ईत में उच्चारण-साम्य के भ्रम से ऐसा किया गया है। १. The name of the Babylonian storm - God was Matu, or Martu, which as we have seen, was the same as the Vedic Marut and must have been taken by Panis and Cholas to Babylonia. २. राहुल सांकृत्यायन मध्य एशिया का इतिहास, खंड १, पृ० २३३-३४ । १७२ : जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान

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