Book Title: Jain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Author(s): Ramchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 185
________________ उत्तराधिकारी प्रतीत होते हैं, जिसे छठी शताब्दी के उत्तरार्द्ध का मालवा का एक स्थानीय राजवंश माना जाना चाहिए । मालवा में निर्मित कई मंदिरों एवं प्रतिष्ठित मूर्तियों से पूर्वमध्यकाल में जैन धर्म के प्रसार एवं उत्थान का ज्ञान होता है । धार एवं उज्जयिनी परमारों के अंतर्गत जैन धर्म के केंद्र थे । बड़ौत में २५ जैन मंदिरों का एक समूह, बूढ़ी चंदेरी के जैनावशेष', राखेत्रा के जैनमंदिर' तथा ममोन, भोजपुर, ऊन', चंदेरी", गुरिला का पहाड़', बीथला', बीजवड़, पूरगिलना", संधारा १, केथुली" आदि के जैन मंदिरों से पूर्व मध्यकाल में जैन धर्म की लोकप्रियता विदित होती है । परमारशासकों ने जैन विद्वानों को संरक्षण दिया तथा जैनाचार्यों के प्रति श्रद्धा व्यक्त की । जैन धर्म के उत्थान की दृष्टि से यह स्वर्णयुग था । 1 मूलसंघ की पट्टावलियों से विदित होता है कि भद्दलपुर से २७वें भट्टारक ने अपना केंद्र उज्जयिनी स्थानांतरित कर लिया था, जो ५३वें भट्टारक माघचंद्र द्वितीय के द्वारा करीब १०८३ ई० में कोटा के बारन में स्थापित किया गया १५ बारन से ६४वें भट्टारक ने चित्तौड़ में अपना पट्ट केंद्र स्थानांतरित कर लिया था, जो कि मालवा से सम्बद्ध क्षेत्र रहे हैं ।" मूलसंघ का सरस्वती गच्छ एवं बलात्करगण की उत्पत्ति उज्जयिनी से ही मानी जाती है ।" मालवा के भट्टारकों में सिंहनन्दि प्रसिद्ध है । " १. आर्कलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, रिपोर्ट १६२३-२४ पृ० १३३ तथा कनिंघम रिपोर्टस ७, पृ० ६४ २. आर्कलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, रिपोर्ट १६२४-२५, पृ० १६४ ३. वही, पृ० १६६ ४. वही, पृ० १६१ ५. वही, १६२२-२३, पृ० ४६ ६. वही, १९१८ - १६, पृ०१७-१८ ७. वही, १९२४-२५, पृ० १६४ ८. वही, पृ० १६७ ६. वही, पृ० १२६ १०. आर्कलाजिकल सर्वे आफ इंडिया, वेस्टर्न सर्कल १६२१, पृ० १०६ ११. वही, १६२० पु० ८१ १२. वही, पृ० ८८- ६१ १३. वही, पृ० ६२ १४. इंडियन एण्टिक्वरी २१, पृ० ५८ १५. वही १६. वही १७. जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ३६१ १८. वही, पृ० ३७१ १७८ : जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान

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