Book Title: Jain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Author(s): Ramchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 196
________________ मेवाड़ में जैन धर्म वलवन्त सिंह मेहता मेवाड़ बनास और चम्बल नदियों तथा उनकी शाखाओं के कूलों व घाटियों में बसा हुआ है जहां अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त पुरातत्ववेत्ता डॉ० सांकलिया ने उत्खनन व शोध से एक लाख वर्ष पूर्व में आदिम मानव का अस्तित्व प्रमाणित किया है। भारत में पाषाणकालीन सभ्यता के सर्वाधिक शस्त्रास्त्र भी यहीं पाये जाने से मेवाड़ स्वत: ही भारत की मानव सभ्यता के आदि उद्गम स्थानों में आता है । आपड़ तथा बागौर की सभ्यताओं को सिंधु घाटी के मोहनजोदाड़ो के ही समान समुन्नत व स्वतंत्र सभ्यताएं घोषित करने से मेवाड़ जैन धर्म के 'कम्म सूरा सो धर्म सूरा' के अनुसार ज्ञान और शौर्य से आप्लावित जैन संस्कृति के लिए सर्वाधिक उपयुक्त रहा है। इसे आदि सभ्यता व शौर्य की भूमि पाकर ही तीर्थंकरों से लेकर महान् धर्माचार्यों ने भी अपने पद-पद्म से पावन और पवित्र किया तथा इस भूमि को जैन धर्म के प्रचार-प्रसार का केन्द्र बनाकर यहीं से उन्होंने अपने धर्म का विस्तार किया । अतः यहां जैन धर्म का इतिहास भी उतना ही प्राचीन है जितना उसका इतिहास माना जाता है । मेवाड़ को मेदपाट साथ प्राग्वाट भी कहा जाता है । मज्झमिका तथा आहाड़ इसके दो प्रमुख नगर थे । ये दोनों ही शब्द जैन धर्म की प्रिय भाषा और जनबोली अर्धमागधी के हैं जिनका अर्थ है आकर्षित करने वाला सुंदर नगर तथा षोडसी युवती-सी सुंदर नगरी । ये दोनों नगर जैन धर्म के आदि केन्द्र रहे हैं । शारदापीठ वसन्तगढ़ जैनियों का प्राचीन सांस्कृतिक शास्त्रीय नगर रहा है । संसार के प्रथम सहकार एवं उद्योग केन्द्र जावर का निर्माण और उसके संचालन का श्रेय प्रथम जैनियों को ही मेवाड़ में मिला है । दशार्णपुर जहां भगवान् महावीर का पदार्पण और आर्यरक्षित की जन्मभूमि और आचार्य महागिरि के तपस्या करने के शास्त्रीय प्रमाण हैं; नाणा दियाणा और नांदिया में जहां भगवान् महावीर की जीवन्त प्रतिमाएं मानी गई हैं वे सब इसी मेवाड़ की भूमि के अंग रहे मेवाड़ में जैन धर्म : १८६

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