Book Title: Jain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Author(s): Ramchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 149
________________ भी हैं । इसी प्रकार अन्य ग्रंथों से भी तुलना की जा सकती है । आर्यरक्षित द्वारा रचित अनुयोगद्वार में भी गणित के विषय हैं। इसकी टीकाएं जिनदास गणि, हरिभद्र सूरि और मलधारि हेमचन्द्र द्वारा रची गयीं । उपलभ्य बृहत्संग्रहणी के संकलनकर्ता मलधारि हेमचन्द्र सूरि के शिष्य चन्द्रसूरि ( ई० बारहवीं शती) हैं । उक्त समस्त रचनाओं से सम्भवतः प्राचीन ज्योतिष करंडक है जिसे मुद्रित प्रति में पूर्वभृद् वालभ्य प्राचीनतराचार्य कृत कहा गया है । उपलभ्य ज्योतिष करंडक - प्रकीर्णक में ३७६ गाथाएं हैं, जिनमें सूर्य प्रज्ञप्ति का सार लिखने का प्रारंभ में उल्लेख है। इसमें काल प्रमाण, मान, अधिक मास - निष्पत्ति, तिथि- निष्पत्ति, ओमरत नक्षत्र परिमाण, चन्द्र-सूर्य- परिमाण, नक्षत्र-चन्द्र-सूर्य-गति, नक्षत्रयोग, मण्डल विभाग, अयन, आवृत्ति, मुहूर्तगति, ऋतु, विषुक्त, व्यतिपात, ताप, दिवसवृद्धि, पौर्णमासी, प्रनष्ट पर्व और पौरुषी- ये २१ पाहुड हैं। इसमें नक्षत्र - लग्न का प्रतिपादन है । पूर्वाचार्य रचित यह आगम वलभी वाचना के अनुसार संकलित है । इस पर पादलिप्त सूरि ने प्राकृत टीका की रचना की थी। इस टीका के अवतरण मलयगिरि ने इस ग्रंथ पर लिखी गयी अपनी संस्कृत टीका में दिये हैं। यहां गणिविज्जा (८२ गाथाएं ) ज्योतिष ग्रंथ भी उल्लेखनीय हैं, जिसमें हारा शब्द का प्रयोग हुआ है । . आचार्य नेमिचन्द्र के ग्रंथ द्रव्यानुयोग के पाठ्य ग्रंथों के रूप में आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती का योगदान अनुपम है । उन्होंने गणित को केन्द्रीयभूत कर समस्त पूर्व आचार्यों के विस्तृत ज्ञान को सारांश में सूत्रबद्ध किया ताकि वे विद्यार्थियों और गृहस्थों के सामान्य पठन में सुविधाजनक सिद्ध हों । षट्खंडागम और उनकी धवला टीका के आधार से गोम्मटसार जीवकांड और कर्मकांड की रचना हुई जिनमें क्रमशः ७३३ और ६६२ गाथाएं हैं । नेमिचन्द्र ने अपनी कृति के अंत में कहा है, "जिस प्रकार चक्रवर्ती षट्खंड पृथ्वी को अपने चक्र द्वारा सिद्ध करता है, उसी प्रकार मैंने अपनी बुद्धि रूपी चक्र से षट्खंडागम को सिद्ध कर अपनी इस कृति में भर दिया है । इसी सफल सैद्धान्तिक रचना ने उन्हें सिद्धान्त चक्रवर्ती की उपाधि से विभूषित कर दिया । संभवत: त्रे विद्यदेव की उपाधि को आचार्य धारण करते थे, जो इस षट्खंडागम के प्रथम तीन खंडों के पारगामी हो जाते थे, जैसे प्रसिद्ध टीकाकार माधव चंद्र तैविद्य | नेमिचन्द्र ने अपनी कृति गोम्मटराय के लिए निर्माण की थी । गोम्मट गंगनरेश राचमल्ल के मंत्री चामुंडराय का एक उपनाम था । इसका अर्थ 'सुन्दर' है । इन्हीं चामुंडराय ने गोम्मटसार पर कन्नड़ में एक वृत्ति लिखी थी जो अब प्राप्य नहीं है। उन्होंने मैसूर के श्रवण बेलगोल के विन्ध्यगिरि पर बाहुबलि की मूर्ति का उद्घाटन कराया था, जो कलात्मक सौन्दर्य के लिए अप्रतिम है । १४२ : जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान

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