Book Title: Jain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Author(s): Ramchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 151
________________ फलीभूत हो सकेगा। ___ यदि हम अणुशक्ति पर नियंत्रण अहिंसात्मक चाहते हैं तो निश्चित ही हमें आत्म-भावशक्ति के नियंत्रण के आविष्कार की कहानी को प्रयोगात्मक रूप में उतारना होगा और वह तभी सफल होगा जब कि हम सिद्धांत के रूप को गणित द्वारा तथा पास्चुलेट्स द्वारा आधुनिक वैज्ञानिक को विश्वास में ला सकेंगे। इस हेतु विपुल सामग्री जो गणित से ओतप्रोत है वह उपरोक्त गोम्मटसारादि जो जीवतत्त्व-प्रदापिकादि टीकाओं में उपलब्ध है और जिसका उपयोग हमें समय रहते कर लेना है ताकि हम आधुनिक विज्ञान और गणित की नवीनतम सीमाओं को शीघ्र ही आगे ढकेलकर श्रेय स्वतंत्र-भारत को दे सकें, जहां अहिंसा के आधार पर ही हम समस्त जगत् को स्वतंत्रता-प्राप्ति हेतु जागृत कर सकें और अहिंसात्मक आंदोलन को जन्म दे सकें। हमें गणितीय सिद्धांतों द्वारा यह विश्वास दिलाना है कि कषाय के नियंत्रण से योग को इस प्रकार संचालित किया जा सकता है कि तीर्थ की उत्पत्ति हो सके- अर्थात् जीवों का अधिकतम कल्याण हो सके । मोह या कषाय जितना कम होगा, उतना ही विशुद्धि होगी, और कल्याणकारी शक्तियों का उतना ही स्रोत प्रवाह शृंखलाबद्ध क्रिया की भांति होगा। धवला...जयधवला टीकाएं अब हम धवला और जयधवला टीकाओं के रचयिता वीरसेनाचार्य की ओर ध्यान देंगे। गणित की दृष्टि से इन टीकाओं का भी बड़ा महत्त्व है। इन टीकाओं में अनेक ऐसे प्रकरण स्पष्ट किए गए हैं तथा सुलझाये गए हैं जो षट्खंडागम के गूढार्थों के रहस्य से भरे हुए हैं और उन विधियों पर आधारित हैं जो टीकाकार से प्राय: एक हजार वर्ष से पूर्व प्रचलित रही होंगी। यद्यपि षट्खंडागम पर कुंदकुंद, श्यामकुंड, तुम्बुलू, समंतभद्र और बलदेव द्वारा टीकाएं लिखी गयीं पर वे अप्राप्य हैं । धवला टीका वीरसेन ने ई० सन् ८१६ में पूर्ण की। इसमें प्राय: बहत्तर हजार श्लोक हैं । टीकाकार के समक्ष जैन सिद्धांत विषयक विशाल साहित्य था। उन्होंने संत कम्म पाहुड, कषाय पाहुड, समति सुत्त, तिलोयपण्ण तिसुत्त, पंचत्थि पाहुड, तत्वार्थसूत्र, आचारांग, बट्टकेर कृत मूलाचार, पूज्यपाद कृत सारसंग्रह, अकलंक कृत तत्वार्थभाषा, तत्वार्थ राजवार्तिक, जीव समास, छंद सूत्र, कम्मपवाद, दशकरणी संग्रह, आदि के उल्लेख किये हैं। गणित सम्बन्धी विवेचन में परिकर्म का उल्लेख किया है । अनेक स्थलों पर उन्होंने गणित का आश्रय लेकर सूत्रों का अर्थ और प्रयोजन सिद्ध किया है। कुछ प्रसंगों पर उन्हें स्पष्ट आगम परंपरा प्राप्त नहीं हुई, तब उन्होंने अपना स्वयं स्पष्ट मत स्थापित किया है और यह कह दिया है कि शास्त्र प्रमाण के अभाव में उन्होंने स्वयं अपनी युक्ति बल से अमुक बात सिद्ध की है। दार्शनिक एवं गणितीय विषयों पर उनका विवेचन पूर्ण और निर्णय १४४ : जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान

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