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[ जैन विद्या और विज्ञान
वैशेषिक दर्शन में परमाणु के चार वर्गीकरण मिलते हैं- पार्थिव, जलीय, तैजस और वायवीय । जैन दर्शन में पुद्गल-स्कन्ध के आठ वर्गीकरण उपलब्ध हैं जिनका जीव से सम्बन्ध है -
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1. औदारिक वर्गणा
2. वैक्रिय वर्गणा
3. आहारक वर्गणा
4. तैजस वर्गणा
5. कार्मण वर्गणा
6. मनो वर्गणा
7. वचन वर्गणा
8. श्वासोच्छ्वास वर्गणा ।
परमाणुवाद पुद्गलवाद का एक भाग है। जैन दर्शन में जीव और पुद्गल के संबंध का व्यापक विवेचन है।
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परमाणु समुदय
यह दृश्य जगत-पौदगलिक जगत परमाणु संघटित है। परमाणुओं से स्कन्ध बनते हैं और स्कन्धों से स्थूल पदार्थ पुद्गल की परिणति दो प्रकार की होती है।
1. सूक्ष्म
2. बादर
आचार्य महाप्रज्ञ सूक्ष्म और बाद का स्पष्ट भेद बताया है कि सूक्ष्म भार-रहित पुद्गल है और बादर भार सहित पुद्गल है। जैन दर्शन का पुद्गल संबंधी विश्लेषण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसके अनुसार सूक्ष्म पुद्गल चार स्पर्श वाला है जो चतुःस्पर्शी कहलाता है तथा बादर पुद्गल अष्टस्पर्शी है जो आठ स्पर्श वाला कहलाता है।
परमाणु के स्पर्श
जैन आगम साहित्य में परमाणु में केवल दो स्पर्श ही बताए हैं। परमाणु में स्निग्ध और रुक्ष में से एक गुण तथा शीत और उष्ण में से एक गुण होता है । इस कारण जैन दृष्टि से स्निग्ध, रुक्ष तथा शीत, उष्ण ये चार मौलिक स्पर्श है। लघु, गुरु तथा मृदु, कठोर ये द्वितीयक स्पर्श हैं। इसके वर्णन में उल्लेखित है कि रुक्ष स्पर्श की बहुलता से लघु स्पर्श प्रकट होता है और