Book Title: Jain Vidya aur Vigyan
Author(s): Mahaveer Raj Gelada
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 350
________________ [ जैन विद्या और विज्ञान इस भूमिका का निर्माण कर सकें तो विश्व के क्षितिज पर नए सूर्य का उदय हो सकता है। 312] नैतिक मूल्यों की उपेक्षा क्यों ? धर्म के क्षेत्र में नैतिक मूल्यों को महत्त्व नहीं दिया जा रहा है। इसलिए धार्मिक आदमी असदाचार करने में संकोच नहीं करता। धर्म के क्षेत्र में आध्यात्मिकता को महत्त्व नहीं दिया जा रहा है, इसलिए मानवीय एकता का स्वप्न साकार नहीं हो रहा है। मानवीय सम्बन्धों में सुधार नहीं हो रहा है। धर्म का आध्यात्मीकरण अध्यात्म विशुद्ध चेतना के विकास का मार्ग है। वह चेतना, जो राग और द्वेष के मंदीकरण से विकसित होती है, उसके तीन फलित हैं > उपशांत मनोवृत्ति, वास्तविक शांति का अनुभव > अनासक्ति - > करुणा दोनों ये धर्म के प्रमुख परिणाम हैं। यह धर्म ही व्यक्ति और समाज के लिए हितकर हो सकता है। इसकी उपलब्धि के लिए आवश्यक है - > एकाग्रता का विकास > संकल्प शक्ति का विकास > संवेग नियंत्रण का अभ्यास इन तीनों शक्तियों का सम्बन्ध किसी सम्प्रदाय से नहीं है। यह सब सम्प्रदायों द्वारा सम्मत मंच हो सकता है। आध्यात्मिक वैज्ञानिक व्यक्तित्व हमारा मूलभूत लक्ष्य होना चाहिए - आध्यात्मिक वैज्ञानिक व्यक्तित्व का निर्माण । केवल आध्यात्मिक व्यक्तित्व अध्यात्म के चिंतन को युग की भाषा में प्रस्तुत नहीं कर सकता, युगचिंतन को प्रभावित नहीं कर सकता । केवल वैज्ञानिक व्यक्तित्व पदार्थ की सीमा से ऊपर उठकर चेतना का स्पर्श नहीं कर सकता और चेतना से उपजने वाली समस्याओं को सुलझा नहीं सकता। इसलिए प्रत्येक प्रबुद्ध व्यक्ति आध्यात्मिक वैज्ञानिक बने, यह युग की अपेक्षा है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372