Book Title: Jain Vidya aur Vigyan
Author(s): Mahaveer Raj Gelada
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

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Page 362
________________ 324] [जैन विद्या और विज्ञान । ____ महाप्रज्ञ - (मुस्कुराते हुए) मैं सोचता नहीं हूं। अचिन्तन की भूमिका में रहता हूं। उससे जो विचार प्रस्फुटित होते हैं, वह लिखा देता हूं। मेरा विश्वास है - 'यदि एकाग्रता हो तो आठ घंटे का काम तीन घंटे में किया जा सकता है। डॉ. कलाम – मैं इससे पूर्ण सहमत हूं। (एक नया प्रश्न प्रस्तुत करते हुए) आचार्य श्री! आपके साहित्य में एकांत बनाम अनेकांत का विशद विवेचन है। अनेकांत को जैसा मैंने समझा है - अनेक लोग, एक साथ कार्य करते हैं, टीम वर्क करते हैं। एकांत वैयक्तिक दृष्टि है। क्या मैं सही सोच रहा हूँ? महाप्रज्ञ - भिन्न विचार और भिन्न चिंतन हो सकता है, किंतु उनमें विरोध न होकर सह-अस्तित्व होना चाहिए। दो विरोधी चिन्तन धाराओं में भी सामंजस्य का सूत्र खोजा जा सकता है। ____डॉ. कलाम – लोग एकांतवादी बन रहे हैं। एकांत दृष्टिकोण को कैसे मिटाया जाए ? अनेकांत की ओर कैसे मोड़ा जाए? महावीर का महत्त्वपूर्ण ... दर्शन है अनेकांत। इसको कैसे आगे बढ़ाएं? . महाप्रज्ञ - सबसे बड़ी समस्या है भाव (इमोशनल प्रोब्लम) की। डॉ. कलाम – क्या अनेकांत दृष्टिकोण में इमोशन बाधा है? महाप्रज्ञ - हां, नकारात्मक भाव समस्या की जड़ है। उससे एकांत दृष्टि पैदा होती है और वही झगड़े का कारण है। अनेकांत दृष्टिकोण के विकास के लिए इस पर ध्यान देना अपेक्षित है कि व्यक्ति अपने इमोशन (भाव) पर नियंत्रण कैसे करें ? इसका अभ्यास जरूरी है। हमारे मस्तिष्क का जो दाहिना पटल (राइट हेमिस्फियर) है, उसको हम जागृत कर सकें तो ये झगड़े समाप्त हो सकते हैं।। डॉ. कलाम - आप जो कह रहे हैं, वह सही है, लेकिन हम करे कैसे? क्या यह बौद्धिक विकास से हो सकता है? महाप्रज्ञ - बुद्धि से लेफ्ट हेमिस्फियर (बायां पटल) जागृत होता है। मस्तिष्क के राइट हेमिस्फियर को जागृत करने के लिए ध्यान का प्रयोग, नाड़ीतंत्रीय संतुलन का प्रयोग जरूरी है। डॉ. कलाम – क्या ध्यान के प्रयोग से यह संभव है? महाप्रज्ञ - हां, यह नियम है कि शरीर के जिस भाग परं ध्यान करते हैं, वह विकसित हो जाता है। जहाँ प्राणधारा का प्रवाह जांता

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