Book Title: Jain Vidya aur Vigyan
Author(s): Mahaveer Raj Gelada
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

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Page 348
________________ 310] [ जैन विद्या और विज्ञान विज्ञान आगे नहीं बढ़ता। वैज्ञानिक प्रश्न पूछता है, तर्क खोजता है। वह संचारक्रान्ति, कृषि उत्पादन से धन-सम्पदा का सर्जन कर सकता है, बशर्ते उसे इसी तरह धर्म का सहारा मिलता रहे। केवल विज्ञान को ही नहीं, समग्र देश को अध्यात्म की आवश्यकता है। आचार्य महाप्रज्ञजी इस दिशा में जो कार्य कर रहे हैं, वह बहुत मूल्यवान हैं।' आचार्य महाप्रज्ञ का सम्बोधन आचार्य महाप्रज्ञ ने सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा – 'कल हमारी राष्ट्रपतिजी से तीन विषयों पर चर्चा हुई - नैतिक और चारित्रिक मूल्यों का विकास कैसे हो? भावात्मक विकास कैसे हो? मैं और मेरेपन का भाव कैसे मिटे ? इतनी शिक्षा, चर्चा और आंदोलनों के बाद भी नैतिक मूल्यों का विकास नहीं हो रहा है तो इसका कारण यही है कि बीमारी कहीं और है और इलाज किसी दूसरी जगह पर किया जा रहा है। बदलने के लिए जरूरी है कि अनकांसियस माइंड (Unconscious mind) तक पहुंचना। हमारा सारा प्रयत्न कांसियस माइंड को बदलने में चल रहा है। इमोशन, व्यवहार, आदत, मेमोरी - ये सब अनकांसियस माइंड के अंतर्गत आते हैं। नैतिक और चारित्रिक विकास के लिए ऐसे कारगर प्रयोगों और विधियों को अपनाना होगा जो अनकांसियस माइंड को प्रभावित कर सके। वहां जो समस्या है, उसे सुलझा सके। जीवनविज्ञान ऐसी प्रयोग पद्धति है, जिसके द्वारा अनकांसियस माइंड को प्रभावित किया जा सकता है। जीवन विज्ञान के प्रयोगों की चर्चा करते हुए आचार्यप्रवर ने कहा'जिसका सिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम अति. सक्रिय है, वह बच्चा उद्दण्ड, उच्छृखल और अनुशासनहीन होगा। जिसका पेरासिंपेथेटिक सक्रिय है, वह बच्चा डरपोक, भीरु और दब्बू होगा। जब तक हम किसी प्रयोग द्वारा दोनों का संतुलन न कर सकें, तब तक किसी बच्चे को ठीक नहीं किया जा सकता। जीवन विज्ञान का प्रयोग इन दोनों के संतुलन का प्रयोग है।' अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय का उल्लेख करते हुए आचार्यवर ने कहा – अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय की चर्चा चलती रही है, किंतु इन दोनों को प्रयोगात्मक रूप में प्रस्तुत करने का श्रेय आचार्य तुलसी को है। उन्होंने अपनी मेधा और प्रज्ञा से इसे आगे बढ़ाया। उन्होंने आध्यात्मिकवैज्ञानिक व्यक्तित्व के निर्माण की कल्पना की और इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य भी किया। कोरा अध्यात्म दुनिया के लिए बहुत उपयोगी नहीं होता।

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