Book Title: Jain Vidya aur Vigyan
Author(s): Mahaveer Raj Gelada
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

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Page 354
________________ 316] [जैन विद्या और विज्ञान मैं आपके साथ अपना बासठ वर्ष पुराना, जब मैं दस वर्ष का था, तब का एक अनुभव बांटना चाहता हूं। मेरे पिता जैनुल ओवेदिन ने एक सौ तीन वर्ष का जीवन जीया। हम रामेश्वरम कस्बे के छोटे से टापू में रहते थे। मेरे पिताजी के दो मित्र थे - फादर बोडेल और श्री लक्ष्मण शास्त्रीगल । वे तीन महान् व्यक्ति अक्सर बाइबिल, कुरान और गीता पर चर्चा किया करते थे। इन तीनों के बारे में विशेष बात यह थी कि मेरे पिता मस्जिद के संरक्षक . और प्रमुख थे। श्री शास्त्रीगल मन्दिर के पुजारी और फादर बोडेल क्राइस्ट चर्च के संस्थापक थे। मैंने उनसे बेहतरीन शिक्षा पाई। एक छोटे से टापू पर, जहां कोई विद्यालय भी नहीं था, ये तीनों सात्त्विक और सदाचारी व्यक्ति कैसे प्रेम और धार्मिक उदारता के बारे में चर्चा करते थे, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। अलग-अलग धर्मों को मानने वाले इन महान् व्यक्तियों ' ने एक छोटे से गांव में रहकर आने वाली पीढ़ियों के लिए वैचारिक एकात्मकता की नींव रखी। रामेश्वर में शिव मंदिर है, जहां भगवान राम ने आराधना की थी। प्रसिद्ध अब्दुल काबुल दरगाह है एवं टापू पर प्रथम क्राइस्ट चर्च भी है। मुझे विश्वास है कि आपका यह सूरत आध्यात्मिक घोषणापत्र हमारे राष्ट्र को एकात्मकता की नई दिशा प्रदान करेगा। प्रसंगवश मैं आपसे महाभारत में वर्णित कुरुक्षेत्र युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण के उसी संदेश की चर्चा करना चाहूंगा, जो उन्होंने अर्जुन से की थी। अर्जुन की दशा निराशाजनक थी। वे इस द्वन्द में उलझे थे कि अपने परिवारजनों पर शस्त्र कैसे उठाऊ? श्रीकृष्ण विश्वरूप के माध्यम से ईश्वरीय शक्ति एवं पाशविक शक्ति के बारे में उपदेश देते हैं, फिर भी अर्जुन की मनोदशा में कोई परिवर्तन नहीं आता है। तब श्रीकृष्ण उन्हें एक बगीचे में ले जाते हैं एवं पुष्प का दृष्टान्त देकर समझाते हैं कि एक पुष्प कैसे मुक्तरूप.से सुगंध और मिठास बांटता है, सबको उन्मुक्तभाव से प्रेम बांटता है। अपना कार्य संपन्न करके एक दिन शांति से गिर जाता है। एक पुष्प की तरह खिलने का और जीने का प्रयास करो। सद्गुणों और विशेषताओं के बावजूद अहंशून्य जीवन । वैचारिक एकात्मकता एवं सार्वभौम विचारों के बारे में इस देश की सभी पीढ़ियों ने प्रेरणास्पद संदेश दिए हैं। हमारे यहां उदार नेतृत्व, अदम्य साहस एवं सार्वभौमिक विचारधारा की गौरवशाली परम्परा रही है। इस अवसर पर मेरे आदरणीय पिताजी की कुछ पंक्तिया याद आती . हैं, जो लखीउद्दीन कमालुद्दीन द्वारा रचित हैं। इसमें अल्लाह पैगम्बर से कहते हैं -

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