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[ जैन विद्या और विज्ञान
जैन कॉस्मोलॉजी के अनुसार ब्रह्माण्ड तीन भागों में अवस्थित है ऊर्ध्व लोक, अघो लोक और तिर्यक् लोक । ऊर्ध्व लोक में जीव और वस्तु की गति को ऊर्ध्व गति कहा है ! अधो लोक में होने वाली गति को अधो गति और तिर्यक् लोक में होने वाली गति को तिरछी गति कहा है। अतः ये गतियां लोक आधारित कही गई हैं ।
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गति विज्ञान के अध्ययन के लिए पाठकों हेतु जैन कॉस्मोलॉजी में वर्णित ब्रह्माण्ड का तीन आयामी मॉडल, इस अध्याय के प्रारम्भ में चित्रित किया गया है। इसके अध्ययन में हमें निम्न तथ्य उपलब्ध होते हैं
1. ब्रह्माण्ड तीन पिरामिडों (Pyramids) से बना है । अधोलोक का आकार ओंधे किए हुए शराव (सकोरे) जैसा है जो पिरामिड की . भांति दिखाई देता है । तिर्यक् लोक, बिना किनारे वाली झालर के समान है तथा ऊर्ध्व लोक का आकार ऊर्ध्व मृदंग (Cylinder) जैसा है जो दो जुड़े हुए पिरामिडों की भांति है। इन तीनों लोकों के आकार भिन्न-भिन्न हैं तथा तीनों लोकों के द्रव्यमान में अन्तर है अतः घनत्व में भी अन्तर है। अतः
घनत्व
अधोलोक > तिर्यक लोक > ऊर्ध्व लोक
2. अधोलोक में सात पृथ्वियों का होना बताया गया है जो वहां के द्रव्यमान और घनत्व को बढ़ाता है। ऊर्ध्व लोक में वैक्रिय पुद्गलों का बाहुल्य है जो प्रायः भारहीन हैं । तिर्यक् लोक का द्रव्यमान अधोलोक से कम और ऊर्ध्व लोक से अधिक है। इससे हम विज्ञान के संदर्भ में कुछ निष्कर्ष निकाल सकते हैं।
(i) तीनों लोकों के घनत्व में अंतर है ।
(ii) द्रव्यमान, आकार और घनत्व की भिन्नता के कारण तीनों लोकों का गुरुत्वाकर्षण भिन्न-भिन्न है ।
(iii) गुरुत्वाकर्षण की भिन्नता के कारण गतियों में भिन्नता है। (iv) समस्त लोक समांगी (Homogenous) नहीं है ।
वैज्ञानिक धारणा
आगमिक निष्कर्षों की हम भौतिक विज्ञान से तुलना करेंगे।
(i) भौतिक विज्ञान के अनुसार जब प्रकाश कि किरण हवा से जल या अन्य किसी द्रव्य से गुजरती है या पानी से हवा के माध्यम