Book Title: Jain Vidya aur Vigyan
Author(s): Mahaveer Raj Gelada
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

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Page 341
________________ प्रेक्षाध्यान और रोग निदान] [305 - मनुष्य में मौलिक मनोवृत्तियां और भाव होते हैं। वृत्तियों का परिष्कार किया जा सकता है और भाव संवेग बनकर नैतिक मूल्यों के विकास में बाधक न बनें, यह योग विद्या द्वारा किया जा सकता है। चरित्र का विकास जीवन विज्ञान की शिक्षा के बिना संभव नहीं है। ध्यान और कुछ नहीं है। वह है जीवन विज्ञान की शाखा को विकसित करना, अपने आपको जानना, अपने मन को शिक्षित करना, अपनी सहिष्णुता की शक्ति को बढ़ाना। वर्तमान में जीवन विज्ञान एक पाठ्यक्रम के रूप में शिक्षा क्षेत्र में प्रविष्ट हो चुका है। आचार्य महाप्रज्ञ का विश्वास है कि इससे शिक्षा क्षेत्र में ज्ञान और अभ्यास की दिशाएं संतुलित होंगी। R ashikaran • • TRANS Brain Spinal Cord Spinal Nerve Roots Spinal Nerves 000

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