Book Title: Jain Vidya aur Vigyan
Author(s): Mahaveer Raj Gelada
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

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Page 339
________________ प्रेक्षाध्यान और रोग निदान ] [303 इनमें से ध्वनि, कायोत्सर्ग और आसन अत्यंत प्रभावकारी तथा लोकप्रिय सिद्ध हुए हैं। महाप्राण ध्वनि . (i) महत्त्व - महाप्राण ध्वनि ध्यान की पूर्व भूमिका का निर्माण करती __ है। मस्तिष्क के स्नायुओं को सक्रिय बनाती है। मन की चंचलता को कम करती है। एकाग्रता बढ़ती है। इसके निरंतर अभ्यास से स्मरण शक्ति अच्छी होती है। पढ़ने में मन लगता है। बाहर के अशुद्ध वातावरण से बालक प्रभावित नहीं होता। श्वास-प्रश्वास मंद और दीर्घ होता है। स्वास्थ्य अच्छा रहता है, मन शांत और भाव निर्मल होते हैं। महाप्राण ध्वनि पूरे वातावरण को तरंगित करती है। (ii) प्रयोग - समपादासन में खड़े रहें। शरीर को स्थिर एवं शिथिल रखें। नाक द्वारा धीरे-धीरे श्वास को भरें। अपने चित्त को कण्ठकूप स्वरयंत्रं पर केन्द्रित करें। अब कंठ और नाक से म..... मं...... ध्वनि करते हुए मस्तक में गूंज का अनुभव करें। इस प्रकार महाप्राण ध्वनि करते समय भरा हुआ संपूर्ण श्वास धीरे-धीरे स्वतः ही. बाहर जाता है। पुनः श्वास को भरें। भावना करें कि शरीर ... के चारों ओर महाप्राण ध्वनि से गुंजित तरंगों का वलय बन रहा है। ध्वनि का पांच बार गूंजन करें। यह प्रयोग दिन में किसी भी समय किया जा सकता है। अपने समय का नियोजन करते हुए महाप्राण ध्वनि को प्रतिदिन करना अत्यंत लाभकारी है। कायोत्सर्ग (i) महत्त्व - कायोत्सर्ग का अर्थ है - शिथिलीकरण। हम आज के इस एलोपेथिक और मेडिकल साइंस के जमाने में जी रहे हैं। इन सारी बातों को बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि सारी कठिनाइयां मानसिक तनाव से पैदा होती हैं। बीमारियां, जटिल आदतें और चिंतन की विकृतियां इन सबके लिए जिम्मेदार होता है - मानसिक तनाव। शिथिलीकरण या कायोत्सर्ग एक प्रक्रिया है तनाव विसर्जन की। जब तनाव कम होता है तो उसके साथसाथ ये समस्याएं भी सुलझती हैं। अधिकांश साइकोसोमेटिक

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