Book Title: Jain Vidya aur Vigyan
Author(s): Mahaveer Raj Gelada
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

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Page 334
________________ [ जैन विद्या और विज्ञान महत्त्वपूर्ण हैं आहार विवेक । जन्म के प्रारंभिक क्षण से अंतिम क्षण तक आहार चलता रहता है। हम खाने के बारे में बहुत कम ध्यान देते हैं न जाने कितने लोग शाकाहार छोड़कर मांसाहार में चले जाते हैं। स्वास्थ्य के लिए यह हानिकारक है। शारीरिक बीमारियों को पैदा करने में भी ये प्रमुख कारण बन रहे हैं। भोजन के बारे में जैसे जानकारी बढ़ रही है मांसाहार से लोग घबरा रहे हैं। प्रेक्षाध्यान के प्रयोगों द्वारा ऐसी चेतना जगाई जाती है जिससे ऐसी आदतें सर्वथा छूट जाती हैं। भोजन का विषय इतना ही नहीं है। चीनी व नमक का अधिक प्रयोग भी कम खतरनाक नहीं है। ज्यादा नमक और चीनी स्वास्थ्य को बिगाड़ते हैं । 298] आहार नली और श्वास नली आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार आहार के समय मौन का प्रयोग करना चाहिए। आहार के समय बोलना नहीं चाहिए, न हंसना चाहिए। शरीर की विचित्र व्यवस्था है। आहार नली और श्वास नली दोनों का ढक्कन एक है, जब हम निगलते हैं तब श्वास की नली पर ढक्कन आ जाता है और नहीं निगलते हैं तो वह फिर खुल जाता है । यदि हम बात करते हुए खाएं तो अन्न श्वास नली में जा सकता है और व्यक्ति मर भी सकता है। आहार के साथ भावक्रिया का प्रयोग भी चलना चाहिए। खाते समय केवल यही ध्यान रहे कि मैं खा रहा हूं। खाने को भी ध्यान का प्रयोग बना ले, एक साधना बना ले तो भोजन सही हो जाएगा और यदि यह नहीं होता तो कब्ज, अपच तथा अन्य बीमारियां हो सकती हैं। यद्यपि यह अत्यंत साधारण सी बात है कि भोजन के समय अन्य बातों में व्यस्त नहीं होना चाहिए लेकिन प्रत्येक व्यक्ति यहीं पर असावधानी बरतता है। इस ओर ध्यान रखना चाहिए । विजातीय का निस्सरण इसके अतिरिक्त आचार्य महाप्रज्ञ का कहना है कि विजातीय का निर्गम एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है, कि जो मूल संचित हो रहा है उसका निर्गमन ठीक हो रहा है या नहीं। यह एक ऐसी बात है जो हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को ही नहीं आध्यात्मिक स्वास्थ्य को भी हानि पहुंचाती हैं। स्वास्थ्य में बड़ी बाधा है मल का निर्गमन ठीक न होना। हम खाते हैं, खाने के साथ-साथ मल का जमाव शुरू हो जाता है। अगर मल का सम्यक् निस्सरण नहीं हो पाता है तो धमनियां अकड़ जाएंगी। संभवतः निरंतर कब्ज के होने का (Chronic Constipation) यही कारण है।

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