Book Title: Jain Vidya aur Vigyan
Author(s): Mahaveer Raj Gelada
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

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Page 307
________________ प्रेक्षाध्यान और रोग निदान ] [271 वैज्ञानिक प्रयोग (i) भीतर के स्पन्दन शरीर शक्ति के विभिन्न पक्षों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ ने शरीर प्रेक्षा को महत्त्वपूर्ण कहा है। जब एकाग्रत्ता आती है तो पता लगता है कि शरीर के स्पन्दन हो रहे हैं। इस मांस और चमड़ी के पुतले के भीतर जो प्राण और चेतना का प्रवाह है, उससे सम्पर्क स्थापित होता हैं। जब तक बाहर की आवाजें आती रहती है, भीतर की सुनाई नहीं देती। उक्त तथ्य की पुष्टि में एक वैज्ञानिक घटना का वर्णन किया है 'कि – एक बार वैज्ञानिक ने साउंड-प्रूफ मकान बनाया। उसमें बाहर की आवाज भीतर प्रवेश नहीं करती और अन्दर की आवाज बाहर नहीं जाती। कुछ वैज्ञानिक, प्रयोग के लिए उस मकान के भीतर बैठे। मशीन की-सी आवाजें आने लगी। उन्हें आश्चर्य हुआ 'कि ये आवाजें कहां से आ रही है ? शब्द निरोधक मकान में बाहर से आवाजें कैसे आ सकती है ? सोचने पर ज्ञात हुआ कि बाहर से कुछ भी नहीं आ रहा है। शरीर के जो भीतर एक विशाल फैक्ट्री चल रही हैं सारी उसकी आवाजें है. रक्त चल रहा है. धमनियां कार्यरत है, सारा नाड़ी तन्त्र सक्रिय है - ये सब आवाजें उनकी है। (ii) शीतलीकरण आज के वैज्ञानिक एक नई विधि का विकास कर रहे है, जिससे आदमी पांच सौ वर्षों तक या हजार वर्षों तक जी सके। यह विधि है - शीतलीकरण की। आदमी को ठंड में जमा दिया गया। दस वर्ष तक वह ठंड में जमा रहा। दस वर्ष के बाद उसे गरमाया और वह जी उठा। यदि बार-बार इस शीतलीकरण की प्रक्रिया को दोहराते जाए तो वह पांच सौ वर्ष भी जी सकता है और हजार वर्ष भी जी सकता है। वैज्ञानिकों ने चींटियों को ठंड में जमा दिया। सब चींटियां मृतवत् हो गई। दस मिनट बाद उन्हें गरमाया गया। वे पुनः जी उठी। उनमें हलचल प्रारम्भ हो गई। हम बहुत बार देखते हैं, मक्खियां और चीटियां जब बहुत ठंडे पानी में गिर जाती है तब वे मृत जैसी हो जाती है फिर जब उन्हें आग से गरमाया जाता हैं या धूप में रखा जाता है तो वे पुनः जीवित हो उठती है।

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