Book Title: Jain Viaha Vidhi Author(s): Sumerchand Jain Publisher: Sumerchand Jain View full book textPage 7
________________ III में व्यवस्था पैदा होती है। राष्ट्र में मर्यादा स्थापन होती है, और लोक में शांति फैलती है इतना ही नहीं इस विवाह के करने से सदाचारी सन्तान पैदा होती है । जो मानव संस्कृति को, मनुष्य कल्याण के साधनों को, मनुष्य उद्धार के मार्गों को सदा जिन्दा रखती है इसी वास्ते धर्म गुरुओं ने विवाह को मंगल कहा है । विवाह समय पूजा और स्तुति: यों तो हर शुभ कार्य के पहिले इष्ट को स्मरण करना जरूरी हैं, परन्तु इस विवाह मंगल के समय जितना भी इसके उद्देश्यों को याद रक्खा जाये, उन्हें भावनारूप भाया जाये, उन्हें पूर्णतया सिद्ध करने वाले महा पुरुषों का गुणानुवाद किया जाये, उनकी पूजा वन्दना की जाये, उतना ही थोड़ा है । यह स्मरण और स्तवन मनुष्य की दृष्टि को विशुद्ध रखता है, उसे इट की ओर लगाये रखना है, उसे भूलों में पड़ने से बचाये रखता है । इसी लिये शास्त्रकारों ने विवाह के हर स्थल पर उपर्युक्त उद्देश्यों को याद रखना, सिद्ध पुरुषों की स्तुति करना जरूरी ठहराया I - इसी आशय को दृष्टि में रखकर इस पुस्तक में उन भावनाओं और स्तुतिपाठों को संकलित किया गया है। जो विवाह के विविध अवसरों के समय मनन किये जाने जरूरी हैं । वास्तव में तो विवाह संस्कार उसी समय होता है, जब वर कन्या का पाणिग्रहण होता है, परन्तु प्रचलित प्रथा के अनुसार इस पाणिग्रहण से पहिले होते वाली लग्न आदि रीतियों को भी विवाह संस्कार का अंश समझ लिया गया है, इसलिये इन लग्न, मण्डप, घुड़चढ़ी, बरी आदि के अवसरों पर भी इस पूजा वन्दना का होना जरूरी है 1 यह पूजा विधान चार अवयवों वाला है । १. इदेव की स्थापना २. इष्टदेव की स्तुति, ३. इष्ट देव की वन्दना ४. इष्टदेव विमर्जन और शान्ति की भावना । इसी क्रम से यथावश्यक इस पूजा विधान का उल्लेख इस पुस्तक में किया गया है । यदि भव्यजनPage Navigation
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