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अतुल रूप गुण आगरी, मांगी बहु गुण धाम ||१५|| उभय पक्ष आनन्द भयो, सब जग बढ्यो उछाह । लग्न मुहूरत शुभ घड़ी, रोप्यो ऋषभ विवाह || १६ || खान पान सन्मान विधि, उचित दान परकाश | संतोषे पोषे सुजन, योग्य वचन मुख भाष ॥ १७ ॥ गज तुरंग चाहन विविध, बनी वरात श्रनृप । रथ में राजत ऋषभ जिन, संग बराती भूप ॥ १८ ॥ नाचें देवी अप्सरा, सब रस पोषै सार । मंगल गावैं किन्नरी, देव करें जयकार ॥ १६ ॥ मंगलीक बाजे बजैं, बहु विधिश्रवण सुहांहि । नर नारी कौतुक निरखि, हरपे अंग न मांहि ॥ २० ॥ आदि देव दुलहा जहां, पायक इन्द्र समान । तिस बरात महिमा कहन, समरथ कौन सुजान ॥ २१॥ आगे आये लेन को, कच्छ सुकच्छ नरेश । विविध भेट देकर मिले, उर आनन्द विशेष || २२ ॥ रतन पौल पहुंचे ऋषभ, तोरण घंटा द्वार । रतन फूल बरपे घने, चित्र विचित्र अपार ॥ २३ ॥ चौरी मण्डप जगमगें, बहु विधि शो ऐन । चारों दिश चलके खरे, कंचन कलश रु बैन ||२४|| मोती झालर भूमका, झलकें होरा होर । मानो आनन्द मेघ की, झड़ी लगी चहुँ ओर ||२५||