Book Title: Jain Viaha Vidhi
Author(s): Sumerchand Jain
Publisher: Sumerchand Jain

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Page 25
________________ वर कन्या बैठे जहाँ, देखत उपजै प्रीत । पिकवनी मुगलोचनी, कामिनि गावे गीत ।। २६ ॥ कन्यादान विधान विधि, और उचित आचार । यथा योग्य व्यवहार सब, कीनों कुल अनुमार ।। २७ ॥ इह विधि विविध उछाहसों, भये मंगलाचार । सज्जन कीनी वीनती, शोभा दिपे अपार ॥ २८ ॥ हर्षे नाभि नरेश मन, हरषे कच्छ सुकच्छ । मरु देवी आनन्द भयो, हरपे परिजन पक्ष ॥ २६ ॥ यह विवाह मंगल महा, पढ़त सुनत आनन्द । सबको सुख सम्पति करें, नाभिराय कुल चन्द ॥ ३० ॥ वंश बेल बाई सुखद, बढ़े धर्म माद । वर कन्या जीवें सुचिर, ऋषभ देव परसाद ।। ३१ ॥ इति शुभम् नोट--शाखोच्चार के पश्चान वंशावली पढ़नी चाहिये । धर्ममति धर्मावतार शाहनपति शाह जैनधर्म परायण अमुक ( गांव का नाम ) गात्रोद्भव श्रीमान् ला० जी प्रपौत्राय नेम धर्म चौबीसी म्वामी पार्श्वनाथजी सदा महाय । धर्ममूर्ति धर्मावतार शाहनपति शाह जैनधर्म परायण अमुक ( गोत्र का नाम) गोत्रोद्भव श्रीमान ला० जी पौत्राय नम धर्म चौबीमी स्वामी पार्श्वनाथ जी सदा सहाय ।

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