Book Title: Jain Viaha Vidhi
Author(s): Sumerchand Jain
Publisher: Sumerchand Jain

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ ( २७ ) ॐ परमयोगिने नमः || || ॐ परमभाग्याय नमः ॥ १०॥ . ॐ परमर्द्धये नमः ||११| ॐ परमप्रसादाय नमः || १२ || ॐ परमकांक्षिताय नमः || १३|| ॐ परमविजयाय नमः || १४ || ॐ परमविज्ञानाय नमः || १५|| ॐ परमदर्शनाय नमः || १६ || ॐ परमवीर्याय नमः || १७ || ॐ परमसुखाय नमः || १८ || ॐ परमसर्वज्ञाय नमः || १६|| ॐ अर्हते नमः || २० || ॐ परमेष्ठिनं नमो नमः || २१ || ॐ परमनेत्रे नमो नमः ||२२|| ॐ सम्यग्दृष्टे सम्यग्दृष्टे त्रैलोक्यविजय त्रैलोक्यविजय धर्ममूर्ते धर्ममूर्ते धर्मनेमे धर्मनेमे स्वाहा ||२३|| इस प्रकार २३ आहूति देकर वही आशीर्वाद सूचक मंत्र पढ़ आहूति दे पुष्प क्षेपे । ૐ इस तरह ( ३३+८+११+१५+१३+६+२३ ) ११२ आहूति और आहूति आशीर्वाद की ऐसी १२० आहूति दे होम पूर्ण करं । ये सात प्रकार पीठिका के मंत्र हैं । ६- सप्तपदी - हवन करने के बाद, सुख और सन्तोष के साथ जीवन निर्वाह करने के लिये. वर और कन्या दोनों एक दूसरे को निम्न प्रकार सात २ प्रतिज्ञायें दिलाते हैं । पहिले वर कन्या को सात प्रतिज्ञायें दिलाता है । फिर कन्या वर को सात प्रतिज्ञायें दिलाती है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47