Book Title: Jain Viaha Vidhi
Author(s): Sumerchand Jain
Publisher: Sumerchand Jain

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Page 43
________________ ( ३३ ) शान्ति पाठ: - सब मनुज नाग सुरेन्द्र जाके छत्रत्रय ऊपर क कल्याण पंचक मोदमाला पाय भवभ्रम तम हरें । दर्शन अनन्त अनन्त ज्ञान अनन्त सुख वीरज भरें । जयवंत ते अरिहंत शिवतियकंत मो उर संचरें ॥१॥ धर ध्यान रूप कमान बान सुतान तुरत जलादिये । युतमान जन्म जरा मरणमय त्रिपुर फेर नहीं भये । अविचल शिवालय धाम पायो स्वगुणतें न चलें कदा | ते सिद्ध प्रभु विरुद्ध मेरे शुद्ध ज्ञान करो सदा ||२|| जे पंच विधि आचार निर्मल पंच अग्नि साधते । वर द्वादशाङ्ग समुद्र अवगाहत सकल भ्रम वाधते । धन सूरि सन्त महन्त विधिगण हरण को अति दक्ष हैं । ते मोक्ष लक्ष्मी देहु हमको जाहिं नाहिं विपक्ष हैं ॥ ३ ॥ जे भीम भव कानन कुटवी पाप पंचानन जहां | · diaण सकल जन दुःखकारण जामके नखगण महा । तहँ भ्रमत भूले जीव को शिवमग बतावें सर्वदा । तिन उपाध्याय मुनीन्द्र के चरणारविन्द नमं सदा ||४|| विन-संग उग्र अभंगतपतें अंग में अति क्षीण हैं । नहिं हीन ज्ञानानन्द ध्यावत धर्मशुक्ल प्रवीण हैं | श्रति तपो कमला कलित भासुर सिद्ध पद साधन करें । ते साधु जयवंत सदा जे जगत के पातक हरें ॥ ५ ॥

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