Book Title: Jain Viaha Vidhi
Author(s): Sumerchand Jain
Publisher: Sumerchand Jain

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Page 33
________________ ( २३ ) ॐ अक्षयाय नमः ॥७॥ ॐ अव्यावाधाय नमः ॥८॥ ॐ अनंतज्ञानाय नमः ।।६।। ॐ अनंतदर्शनाय नमः ॥१०॥ ॐ अनंतवीर्याय नमः ॥११॥ ॐ अनंतसुखाय नमः॥१२॥ ॐ नीरजसे नमः ॥१३॥ ॐ निर्मलाय नमः ॥१४॥ ॐ अच्छंद्याय नमः ॥१५॥ ॐ अभेद्याय नमः ॥१६॥ ॐ अजराय नमः ॥१७॥ ॐ अमराय नमः ॥१८॥ ॐ अप्रमेयाय नमः ॥१६॥ ॐ अगर्भवासाय नमः ॥२०॥ ॐ अक्षाभ्याय नमः ॥२१।। ॐअविलीनाय नमः ॥२२॥ ॐ परमधनाय नमः ॥२३॥ ॐ परमकाष्ठायोगरूपाय नमः ॥२४॥ ॐ लोकारवासिने नमोनमः ॥२५॥ ॐ परमसिद्वेभ्योनमानमः ॥२६।। ॐ अर्हन्मिद्धेभ्यो नमो नमः॥२७|| ॐ केवलिमिटेभ्यो नमो नमः । २८॥ ॐ अंतःकृत्सिद्वेभ्यो नमो नमः ॥२६॥ ॐ परंपरामिद्धेभ्यो नमो नमः ॥३०॥ ॐ अनादिपरंपरासिद्वेभ्यो नमो नमः ॥३१॥ ॐ अनाद्यनुपममिद्धेभ्यो नमो नमः ॥३२॥ ॐ सम्यग्दृष्टे २ आमन्नभव्य२ निर्वाणपूजार्ह २ अग्नीन्द्र२ स्वाहा ॥३३॥ इस तरह ३३ मंत्र पढ़ पाहूति देकर फिर नीच लिग्वा आशीर्वाद सूचक मंत्र पढ़ पाहूति देव और पुष्प ले अपने सर्व पास बैठने वालों के ऊपर डाले। सेवाफलं षट्पमस्थानं भवतु । अपमृत्युविनाशनं भवतु । समाधिमरणं भवतु ।।

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