Book Title: Jain Viaha Vidhi
Author(s): Sumerchand Jain
Publisher: Sumerchand Jain
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( २४ )
अथ जातिमंत्र ॐ सत्यजन्मनः शरणं प्रपद्यामि ॥१॥ ॐ अर्हज्जन्मनः शरणं प्रपद्यामि ॥२॥ ॐ अर्हन्मातुःशरणं प्रपद्यामि ॥३॥ ॐ अर्हत्सुतस्य शरणं प्रपद्यामि ॥४॥ ॐ अनादिगमनस्य शरणं प्रपद्यामि ॥५॥ ॐ अनुपमजन्मनः शरणं प्रपद्यामि ॥६॥ ॐ रत्नत्रयस्य शरणं प्रपद्यामि ॥७॥ ॐ सम्यग्दृष्टे सम्यग्दृष्टे ज्ञानमूर्ते ज्ञानमूर्ते सरस्वति सरम्बति स्वाहा ॥८॥
इम तरह जानिमंत्र पढ़ पाठ आहूति देकर आशीर्वाद-मूचक नीचे लिखा मंत्र पढ़ आहूति दे पुष्प क्षेपे । सेवाफलं षट्परमस्थानं भवतु । अपमत्युविनाशनं भवतु । समाधिमरणं भवतु ।
अथ निस्तारकमंत्र । ॐ सत्यजाताय स्वाहा ॥१॥ ॐ अर्हजाताय स्वाहा ॥२॥ ॐ षटकर्मणे स्वाहा ॥३॥ ॐ ग्रामपतये म्वाहा ॥४॥ ॐ अनादिश्रोत्रियाय स्वाहा।।५॥ ॐ स्नातकाय स्वाहा।।६ ॐ श्रावकाय स्वाहा ॥७॥ ॐ देवब्राह्मणाय स्वाहा ॥८॥ ॐ सुब्राह्मणाय स्वाहा ॥8॥ ॐ अनुपमाय स्वाहा ॥१०॥ ॐ सम्यग्दृष्टे सम्यग्दृष्टे निधिपते निधिपते वैश्रवण वैश्रवण स्वाहा ॥११॥
इस तरह ११ श्राहूति दे फिर वही "संवाफलं षट् परम स्थान

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