Book Title: Jain Viaha Vidhi
Author(s): Sumerchand Jain
Publisher: Sumerchand Jain

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Page 23
________________ ( १३ ) मरु देवी राणी प्रगट, शुभ लक्षण आधार । तिन के तीर्थङ्कर ऋषभ, भये प्रथम अवतार ॥ ५ ॥ स्वामी स्वयम्भू परम गुरु, स्वयं बुद्ध भगवान | इन्द्र चन्द्र पूजत चरण, आदि पुरुष परमाण || ६ || तीन लोक तारण तरण, नाम विरद विख्यात । गुण अनन्त आधार प्रभु, जगनायक जगतात ॥ ७ ॥ जन्मत व्याह उछाह में, शुभ कारज की आदि । पहले पूज्य मनाइये, विनशैं विघन विषाद ॥ ८ ॥ मकल सिद्धि सुख सम्पदा, सब मन वांछित होय । तीन लोक तिहुँ काल में, और न मंगल कोय ॥ ६ ॥ इस मंगल की भूलि के, करें और से प्रीति । तं जान समझैं नहीं, उत्तम कुल की रीति ॥ १० ॥ नाभि नरेश्वर एक दिन, कियो मनोरथ सार । आदि कुमर परनाइये, बोले सुबुधि विचार ।। ११ । हो कुमर तुम जगत गुरु, जगत पूज्य गुणधाम | जन्म योग तैं लोक सब, कहैं हमें गुरु नाम ॥ १२ ॥ तातें नहीं उलंघन, मेरे वचन कुमार | व्याह करो आशा भरो, चलो गृहस्थाचार ॥ १३ ॥ सुनके वचन सु तात के, मुसकाये जिन चन्द | तब नरेश जानी सही, राजी ऋषभ जिनंद ॥ १४ ॥ बेटी कच्छ सु कच्छ की, नन्द सुनन्दा नाम ।

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