Book Title: Jain Viaha Vidhi
Author(s): Sumerchand Jain
Publisher: Sumerchand Jain

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Page 15
________________ जिन्होंने विषय-वासना और धन-वैभव को छोड़कर समता का मार्ग लिया है, जिन्होंने अपनी सहनशीलता और तपश्चरण के बल से ज्ञान-धन और आत्मानन्द को प्राप्त किया है ऐसे साधुओं को बार बार नमस्कार है। देव-पूजा इसके उपरान्त निम्न पाठ पढ़कर ( अर्हन्त, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय, माधु, जिनवाणी, जिनधर्म, जिन चैत्य, जिन चैत्यालय ) नव देव की पूजा करें। नव देव पूजा पाठ इन्द्रस्य प्रणतस्य शेखरशिखा रत्नार्कभासानखश्रेणीतेक्षणविम्बशुभदलिभद्द गेल्लसत्पाटलम् । श्रीसांघ्रियुगं जिनस्य दधदप्याम्भोजमाम्यं रजःत्यक्तं जाड्यहरं परं भवतु न श्चेतोऽर्पितं शर्मणे ॥१॥ ___ॐ ह्रीं श्रीसर्वज्ञवीतरागभगवदर्हत्परमेष्टिनं जनादिभिरर्चयामि । तत्सर्वप्रतिबन्धकप्रविगमनव्यक्तसम्यक्त्वविद् । दृग्वीयाण्यवगाहनागुस्लघुप्रध्वस्तवाधौद्धरम् ॥ संजानामि जपामि संततमभिध्यायामि गायामि तम् । संस्तौमि प्रणमामि यामि शरणं, सिद्धं विशुद्धं प्रभम् ।।२।। ॐ ह्रीं सकलकर्मविमुक्तपरब्रह्मपरमेश्वराय श्रीसिद्ध परमेष्ठिनं जलादिभिरर्चयामि ।

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