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जैन तीर्थ परिचायिका
पंजाब, हिमाचल, जम्मू पालमपुर-धरमशाला के रास्ते में पालमपुर से 25 और धरमशाला से 13 कि.मी. जाने पर चामण्डा देवी
रास्ता और भी 1 कि.मी. दूर चामुण्डा देवी के मन्दिर तक गया है। तीन तरफ से धौलाधार से घिरा पहाड़ी गाँव-मन्दिर के लिए इसकी प्रसिद्ध है। देवी बहुत ही जाग्रता मानी जाती हैं। मन्दिर के पीछे नन्दीकेश्वर शिव की गुफा है।
धरमशाला ओक और पाइन वृक्षों से आच्छादित कांगड़ा वैली का एक शांत-स्निग्ध सुन्दर धरमशाला पहाड़ी शहर है। शहर की अन्तिम सीमा पर देवी महाकाली का मन्दिर भी है। मनाली से धरमशाला 244 कि.मी. है। दिल्ली 495, चण्डीगढ़ 248, अम्बाला 285, डलहौजी 162, पठानकोट 92, अमृतसर 192, नांगल 145, मण्डी 147, योगीन्दर नगर 761
धरमशाला से ज्वालामुखी की दूरी 54 कि.मी. है, कांगड़ा की दूरी 36 कि.मी. है। पठानकोट ज्वालामखी
12 3, मण्डी 171, मनाली 281, शिमला 321 कि.मी. सहित पालमपुर, योगीन्दर नगर सहित उत्तर भारत के विभिन्न स्थानों से ज्वालामुखी आती है। ज्वालाजी 51 पीठों में एक पीठ है। सती की जिह्वा कालीधर पहाड पर गिरी थी, और उसी स्थल पर राजा भमिचन्द्र ने मन्दिर बनवाया था। आज भी वह जिह्वा मन्दिर के बीच छोटे से कण्ड में अनिर्वाण नीलाभ शिखा के रूप में जल रही है। मन्दिर में और भी कई शिखाएँ हैं। ज्वालामुखी में देवी की कोई मूर्ति नहीं है। शिखा ही देवी के अस्तित्व के रूप में पूजित है।
पठानकोट से 23 कि.मी. दूर नूरपुर होकर डलहौजी का रास्ता भी गया है। यात्रा के दौरान नूरपुर
बस से उतर कर नूरपुर घूमकर दूसरी बस पकड़कर चला जा सकता है। नूरपुर में प्राचीन किला और बैजानाथ मन्दिर है। नूरपुर के शॉल की भी काफी प्रसिद्धि है।
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