________________
मध्य प्रदेश
जैन तीर्थ परिचायिका में 18 मंदिर हैं। यहां जैन जैनेतर लोगों की विशेष पूजनीय 'बड़े बाबा' की कलात्मक भव्य चमत्कारिक प्रतिमा अत्यंत मनोहारी और मन को मुग्ध करने वाली है। यह प्रतिमा 12' ऊँचाई की है। इसके दोनों ओर उसी ऊंचाई की भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमाएं हैं। पहाड़ की तलहटी में एक विशाल वर्धमान सागर नामक तालाब है जो इस स्थान की शोभा और भी बढ़ाता है।
ठहरने की व्यवस्था : तलहटी में विशाल धर्मशाला है जहाँ बिजली, पानी व बर्तनों की सुविधाएँ
हैं। पहाड़ पर भी बिजली और पानी की सुविधा है। यहाँ से पहाड़ पर जाने के लिए पक्की सीढ़ियाँ हैं।
मूलनायक : श्री चन्द्रप्रभ भगवान, कायोत्सर्ग मुद्रा में।
जिला दतिया मार्गदर्शन : यह तीर्थ सनावल गाँव के निकट पहाड़ी पर स्थित है जहाँ से सोनागिरि रेल्वे स्टेशन की सोनागिरि तीर्थ
3 कि.मी. दूर है। ग्वालियर से तीर्थ स्थल की दूरी 70 कि.मी. है। तलहटी तक पहुँचने के । लिए पक्की सड़क है तथा पहाड़ी पर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। स्टेशन से तीर्थ पेढी : पर आने के लिए क्षेत्र की बस तथा अन्य साधन भी उपलब्ध रहते है। यहाँ से प्रातः श्री दिगम्बर सिद्ध क्षेत्र 8.15 बजे श्री महावीर जी के लिए बस जाती है। यहाँ से झांसी 40 कि.मी. दूर है। पावाजी संरक्षणी कमेटी यहाँ से 90 कि.मी., पपोरा जी 165 कि.मी. तथा आहार जी 175 कि.मी. एवं चन्देरी पोस्ट-सोनागिरि
जिला दतिया-475886 175 कि.मी. दूर हैं।
(मध्य प्रदेश) परिचय : प्राचीन काल में इसे श्रवणगिरि कहते थे। मन्दिर को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि फोन : 07522-2222
विक्रमी संवत् 335 के बाद अनेकों बार इस मन्दिर का जीर्णोद्धार हुआ होगा। अष्टम तीर्थंकर श्री चन्द्रप्रभ भगवान का समवशरण यहाँ पर भी रचा गया था, ऐसा उल्लेख मिलता है। लगभग 108 अनेकों मन्दिर इस पहाड़ी पर हैं। पहाड़ी की तलहटी में 16 मंदिर हैं। इस रमणीक पहाड़ी पर मंदिर निर्माण कला का सौन्दर्य एवं शैली की विशेषता सहज ही अपनी ओर आकृष्ट कर लेती हैं सभी मन्दिरों की निर्माण शैली एक-दूसरे से भिन्न है। पहाड़ पर नारियल कुण्ड है जो एक शिला में नारियल के आकार का फटा हुआ है। एक और शिला है जिसे बजाने पर धातु जैसी स्वर ध्वनि पैदा होती है। इसी कारण उसे बजनी शिला कहते हैं। ठहरने वाले यात्रीगण यहाँ अपराह्न समय परिक्रमा करने जाते हैं जिसमें कई चरण पादुकाओं
के भी दर्शन होते हैं। सायंकाल चन्द्रप्रभ भगवान की भव्य आरती होती है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने हेतु दिल्ली धर्मशाला, नरबसी वाली धर्मशाला, तेरापंथी कोठी,
बीसपंथी कोठी, त्यागी व्रती आश्रम, लभेंचू भवन, भट्टारक कोठी आदि अनेकों सुविधायुक्त धर्मशालाएँ हैं। भोजनशाला प्रातः 10.30 से 12 बजे तक तथा सायं 5 से 6 तक चालू रहती है।
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelpr39org