Book Title: Jain Tirth Parichayika
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 200
________________ तमिलनाडु जैन तीर्थ परिचायिका तपोभूमि बनाया। शास्त्रों में इस प्रदेश का मलयप्रदेश, पर्वत को नीलगिरि व पोन्नूर गाँव को हेमग्राम नाम से संबोधित किया है। आचार्य भगवन्त के प्राचीन चरण चिन्ह आज भी पर्वत पर मौजूद हैं। प्रतिवर्ष पौष शुक्ला दशमी को मेला लगता है। इस मन्दिर के अतिरिक्त श्री कुन्दकुन्दाचार्य के चरण चिन्ह दर्शनीय हैं। पहाड़ के प्राकृतिक, सुन्दर व शान्त वातावरण से मन मुग्ध हो जाता है। ठहरने की व्यवस्था : यहाँ ठहरने की पूर्ण व्यवस्था है। भोजनशाला शीघ्र ही चालू होने वाली है। निकटवर्ती शहर वंदवासी में होटल आदि की सुविधा है। श्री मुनिगिरि तीर्थ मूलनायक : श्री कुंथुनाथ भगवान, अर्द्ध पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : यह तीर्थ कांचीपुरम से 15 कि.मी. दूर तालाब के किनारे बसे करकन्दे गाँव में स्थित पेढ़ी: श्री कुंथुनाथ भगवान जैन है। बस व कार मन्दिर तक जा सकती है। मन्दिर परिचय : ईसा की तीसरी शताब्दी से यह जैन मुनियों की तपोभूमि रहने का उल्लेख मिलता है। करकन्दे गाँव, इसी मन्दिर में शास्त्रार्थ हुआ बताया जाता है। स्मृति हेतु आचार्य श्री की मूर्ति इस मन्दिर डाकघर वेम्बाक्कम के अहाते के अर्न्तगत श्री अम्बिका देवी के मन्दिर के मण्डप में प्रतिष्ठित है। प्रतिवर्ष फाल्गुन जिला उत्तर आर्काड़ शुक्ला सप्तमी से चतुर्दशी तक मेला लगता है। वार्षिक मेले के उपरान्त तीन दिन तक (तमिलनाडु) तपोत्सव होता है। वर्तमान में इसी मन्दिर के अहाते में श्री महावीर भगवान, पार्श्वनाथ भगवान, आदिनाथ भगवान व श्री अम्बिका देवी के मन्दिर हैं। तालाब के दूसरी तरफ स्थित तिरूप्पणमूर गाँव में भी एक मन्दिर है। यहाँ प्रभु-प्रतिमाओं की कला विशिष्ट आकर्षक है। ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के निकट ही सभी सुविधायुक्त धर्मशाला है। श्री तिरूमलै तीर्थ मूलनायक : श्री नेमिनाथ भगवान, कायोत्सर्ग मुद्रा। मार्गदर्शन : यह तीर्थ आरणी पोलूर मार्ग पर वडमादिमंगलम् स्टेशन से 5 कि.मी. दूरी पर है। पेढ़ी : श्री जैन मन्दिर, परिचय : भगवान श्री नेमिनाथ का यहाँ भी समवसरण रचा गया था। पाण्डवों का जब इस भूमि तिरूमलै गाँव, डाकघर में आगमन हुआ तब उन्होंने दर्शन हेतु इस प्रतिमा का निर्माण करवाया था। वर्तमान में यह वडमादिमंगलम्, क्षेत्र पुरातत्व विभाग की देख-रेख में है। श्री ऋषभसेन, समन्तभद्र, वरदत्त, वादिराज, तहसील आरणी, जिला गजकेसरी आदि आचार्यों की यह तपो भूमि है। प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ला छठ एवं मकर उत्तर आर्काडु संक्रान्ति के तृतीय दिवस पौष शुक्ला तृतीया को मेलों का आयोजन होता है। इसी पहाड़ (तमिलनाडु) पर श्री पार्श्वनाथ भगवान का एक और मन्दिर है। पहाड़ की चोटी पर श्री ऋषभसेन, समन्तचन्द्र, वरदत्त आचार्यों की चरणपादुकाएँ हैं। यहाँ तलेटी में व पहाड़ पर स्थित मन्दिरों में प्राचीन कलात्मक प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं। पहाड़ पर कई जलकुण्ड व गुफाएँ है। ठहरने की व्यवस्था : वर्तमान में ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं हैं। 164 Jain Eucation International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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