Book Title: Jain Tirth Parichayika
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 180
________________ महाराष्ट्र मुम्बई श्री गोडीजी पार्श्वनाथ भगवान वालकेश्वर का मन्दिर पेढ़ी : जीवन विला कम्पाउण्ड, 7वाँ माला, नारायण दाभोलकर रोड, वालकेश्वर, मलबार हिल, मुम्बई - 400004 फोन : 3698036 श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान भव्य शिखरबंदी जिनालय पेढ़ी टेंबीनाका, थाणा (महाराष्ट्र ) फोन : 5342389, 5369811 (ऑ.), बाबूलालजी (ऑ.) 5341177, (घर) 5340490 जुगराजजी पुनमिया (ऑ.) 5334319 (घर) 5366087 148 Jam Education International 2010_03 जैन तीर्थ परिचायिका मुम्बई की विचित्रता, उसकी स्तम्भित कर देने वाली गगन चुम्बी भव्य अट्टालिकाएँ समुद्र की गहराई को माप लेने की होड़ सी करती प्रतीत हो रही है। इतना ही नहीं, समुद्र का विस्तार घटता जा रहा है और वहाँ शहर पसरता जा रहा है। भारत के प्रमुख जनप्रिय शहरों में आज मुम्बई शीर्षस्थ है। केवल भारत ही क्यों, विश्व के आधुनिकतम शहरों में मुम्बई का छठा स्थान है। मुम्बई के मार्ग भी अति भव्य, प्रशस्त और सुन्दर हैं। यानवाहनों की व्यवस्था भी काफी सुन्दर है 1 यहाँ की जलवायु भी विविधतापूर्ण है । मुम्बई वायुमार्ग से समूचे विश्व से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है। शहर से 26 कि.मी. दूर भारत का व्यवस्ततम हवाई अड्डा मुम्बई अर्थात् सांताक्रुज है। एयर इण्डिया के विमान मुम्बई से विश्व के 36 देशों के लिए उड़ान भरते हैं । रेलमार्ग द्वारा मुम्बई भारत के विभिन्न शहरों से जुड़ा हुआ है। मुम्बई सेन्ट्रल स्टेशन के सामने महाराष्ट्र स्टेट ट्रांसपोर्ट डिपो है । इसी डिपो में महाराष्ट्र स्टेट ट्रांसपोर्ट के अतिरिक्त मध्य प्रदेश, गुजरात, गोवा, कर्नाटक राज्य परिवहन के भी कार्यालय हैं। मुम्बई के प्राचीन मन्दिरों में श्री गोडीजी पार्श्वनाथ बालकेश्वर मन्दिर का नाम अग्रणीय है । इस जिनालय में पंच धातु की 7 प्रतिमा, 3 रत्नों की चाँदी की 1 प्रतिमा (चौबीसी ), सिद्धचक्रजी- 5, अष्टमंगल - 1 तथा माताजी श्री चक्रेश्वरी देवी व पद्मावती देवी भी विराजमान हैं । मुम्बई में वैसे 450 से अधिक जैन मन्दिर हैं। हर क्षेत्र में अपने आप में दर्शनीय जैन मन्दिर 3-4 की संख्या से अधिक में है। कई स्थानों पर ठहरने एवं भोजन की सुन्दर व्यवस्था भी उपलब्ध है। यह जिनालय श्री मुनिसुव्रत प्रभु नवपद जिनालय एवं कोंकण शत्रुंजय के नाम से विशेष रूप सुप्रसिद्ध है। श्रीपाल महाराज अपने विदेशाटन काल में सागर में गिरने के बाद यहाँ थाणा नगरी में आये थे, यह घटना भगवान श्री मुनिसुव्रत स्वामी जी के शासनकाल में बनी थी, इसलिए थाणा में श्री मुनिसुव्रत स्वामी जी श्री नवपद जिनालय का आयोजन हेतु पूर्ण है। इस मन्दिर का निर्माण मुनि श्री शान्तिविजय जी के उपदेश से हुआ था। वे आत्माराम जी (विजयानन्द सूरीश्वर जी म. ) के शिष्य थे । वे बड़े विद्वान, तार्किक तथा जैन सिद्धान्तों के मर्मज्ञ थे। उनकी कृपा दृष्टि थाणा पर ज्यादा थी । अपने स्वरोदय तथा प्रश्न तंत्र के आधार पर उन्होंने यहाँ के लोगों से कहा कि यह इस भूमि पर श्री मुनिसुव्रत स्वामी का मन्दिर बन जाये, तो यह संघ के लिए श्रेयस्कर होगा । श्रीसंघ उनकी बात सहर्ष मान ली और मन्दिर का निर्माण कार्य शुरू किया। कुछ समय पश्चात् खरतरगच्छीय आचार्य श्री जिनऋद्धि सूरीश्वर जी महाराज का थाणा में आगमन हुआ। वे शुद्ध चारित्र पालक और ज्ञानी- ध्यानी महात्मा थे। उनके साथ गुलाब मुनि भी थे। उनकी देखरेख में मन्दिर का काम हुआ । इस लोकप्रिय मन्दिर के मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी जी की बड़ी भव्य प्रतिमा की अंजनशलाका वि. सं. 2004 के वैशाख मास में वढवाण शहर में परम पूज्य शासन सम्राट आचार्य भगवन्त श्री विजय नेमिसूरीश्वर जी म. सा. की पुण्य निश्रा में हुई थी, यह अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन परम पूज्य युग दिवाकर आचार्य भगवंत श्री विजयधर्म सूरीश्वर जी म. सा. की पुण्य प्रेरणा से For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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