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आत्मवाद, लोकवाद, कर्मवाद, क्रियावाद | ११५
(१३) गुण द्वारा गुगी का ग्रहण-चैतन्य गुण है और चेतना गुणी । चैतन्यगुण उसके कार्यों द्वारा प्रत्यक्ष है, किन्तु चेतन (आत्मा) प्रत्यक्ष नहीं है । जैसे--विद्युत धारा आँखों से प्रत्यक्ष नहीं दिखाई देती, किन्तु प्रकाश आदि उसके गुण प्रत्यक्ष दीखते हैं, उन प्रत्यक्ष गुण या कर्मों से परोक्ष बिजली का अस्तित्व प्रमाणित हो जाता है, इसी प्रकार प्रत्यक्ष चैतन्य गुण या उसके कार्यों से परोक्ष चेतन (आत्मा) का अस्तित्व प्रमाणित हो जाता है।
(१४) विशेष गुण द्वारा स्वतन्त्र अस्तित्व बोध-किसी भी पदार्थ का अस्तित्व उसके विशिष्ट असाधारण गुण द्वारा भी सिद्ध होता है। आत्मा में चैतन्य नामक विशिष्ट-असाधारण गुण है, जो किसी भी दूसरे पदार्थ में व्याप्त नहीं है। इसलिए आत्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व सिद्ध होता है।
(१५) द्रव्य की कालिकता-जो पहले-पीछे नहीं होता, वह मध्य (वर्तमान) में भी नहीं हो सकता। आत्मा यदि पहले-पीछे न होता तो वर्तमान में भी नहीं हो सकता था, किन्तु ऐसी बात नहीं है । आत्मा (जीव) एक स्वतन्त्र द्रव्य है। वह पहले था, पीछे भी रहेगा, तो वर्तमान में भी है, ऐसा सिद्ध होता है।
(१६) विचित्रताओं के कारणभूत कर्म से आत्मा की सिद्धि-संसार में कोई सूखी, कोई दुःखी; कोई विद्वान् तो कोई मूर्ख, कोई धनिक तो कोई निर्धन; इस प्रकार की असंख्य विचित्रताएँ दृष्टिगोचर होती हैं । ये विचित्रताएँ - किसी न किसी कारण से ही हो सकती हैं। वह कारण हैकर्म । और कर्म का कोई न कोई नियामक या कर्ता अवश्य होना चाहिए। कर्मों का नियामक या प्रयोजक अथवा कर्त्ता चैतन्यशील आत्मा के सिवाय और कोई नहीं हो सकता, क्योंकि आत्मा को सुख-दुःख देने वाला या धनी-निर्धन, विद्वान्-मूर्ख बनाने वाला कर्मपुञ्ज आत्मा के साथ प्रवाहरूप से अनादिकाल से संयुक्त है । अतः कर्म के अस्तित्व के आधार पर उन कर्मों का कर्त्ता-भोक्ता या क्षयकर्ता, आत्मा स्वतः सिद्ध हो जाता है।
___ इसलिए स्वसंवेदनप्रत्यक्ष, अनुमान एवं आगमप्रमाणों तथा सर्वज्ञसर्वदर्शी के वचनों से, युक्ति और तर्क से चर्मचक्षओं से अगोचर आत्मा का अस्तित्व सिद्ध हो जाता है।
, आत्मा का स्वरूप आत्मा का अस्तित्व मानने मात्र से ही जैनदर्शन, उस व्यक्ति को आत्मवादी स्वीकार नहीं करता । आत्मवादी होने के लिए आत्मा का स्वरूप विषयक अज्ञान और मिथ्यात्व दूर होकर उसके जिनोक्त यथार्थ स्वरूप का ज्ञान और श्रद्धान होना भी आवश्यक है।