Book Title: Jain Tattva Kalika
Author(s): Amarmuni
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 614
________________ २८४ | जैन तत्त्वकलिका : नवम कलिका 'लोक में कहाँ ?' 'मध्यलोक में। 'मध्यलोक में कहाँ ? 'जम्बूद्वीप में ।' 'जम्बूद्वीप में कहाँ ?' 'भरतक्षेत्र में। 'भरतक्षेत्र में कहाँ ?' _ ' 'मगधदेश में।' 'मगधदेश में कहाँ ? 'राजगृही नगरी में।' 'राजगृहो नगरी में कहाँ ?' 'नालंदा-वास में ।' 'नालन्दावास में कहाँ ?' 'अपने घर में । निवास के सम्बन्ध में ये सारे उत्तर नैगमनय के हैं। उनमें पूर्व-पूर्व के वाक्य सामान्य धर्म को और उत्तरवर्ती वाक्य विशेष धर्म को ग्रहण करते जाते हैं। ___नैगमनय के तीन प्रकार हैं-भूतनगम, भविष्यनगम और वर्तमान नैगम। भूतकाल के सम्बन्ध में वर्तमानकाल का आरोपण करना भूतनगम है । जैसे—'आज दीपावली के दिन भगवान् महावीर स्वामी मोक्ष पधारे।' भगवान् महावीर को निर्वाण प्राप्त किये २५०० वर्ष से अधिक हो गए, फिर भी 'आज' शब्द के प्रयोग से उसमें वर्तमान काल का आरोपण किया गया है। भविष्यकाल के विषय में वर्तमान काल का आरोपण करना भविष्यनंगम है । जैसे-जो अर्हन्त हैं, वे सिद्ध; जो सम्यक्त्वधारक हैं वे मुक्त । यहाँ अर्हन्त अभी देहधारी हैं, अभी तक सिद्ध हुए नहीं, परन्तु वे देहमुक्त होने पर अवश्य ही सिद्ध होंगे, इस निश्चय से, 'जो होने वाला है, उसमें 'हए' का आरोप करना भविष्यनैगम है। किसी वस्तु को बनाना प्रारम्भ करें, और वह अमुक अंश तक हो गई हो और अमुक अंश में न हई हो, फिर भी कहना कि होती है, अथवा जो होती है, उसे कहना कि 'हो गई'—यह वर्तमाननगम कहलाता है। एक व्यक्ति बम्बई जाने के लिए रवाना हुआ, फिर भी कहा जाता है कि 'बम्बई गया।' वस्त्र जलना शुरू हुआ, फिर भी कहा जाता है-वस्त्र जला। ये सब वर्तमान नैगम के वाक्य हैं। (२) संग्रहनय-प्रत्येक वस्तु में सामान्य और विशेष धर्म रहे हुए हैं। उसमें विशेष को गौण करके जो सामान्य को प्रधानता दे, वह संग्रहनय कहलाता है। हिन्दी व्याकरण में जिसे 'जातिवाचक' शब्द कहते हैं, वे सब इसी प्रकार के हैं। जैसे—'भोजन' शब्द कहने से रोटी, साग, दाल, भात,

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