Book Title: Jain Tattva Kalika
Author(s): Amarmuni
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 619
________________ प्रमाण-नय-स्वरूप | २८६ है। एक व्यक्ति ने शंख में अपने गुरु का आरोपण किया, यह असद्भाव स्थापना है। नाम और स्थापना दोनों वास्तविक अर्थशून्य होते हैं। (३) न्यनिक्षेप-वाणी-व्यवहार विचित्र है। कभी-कभी वह भूतकालीन स्थिति का और कभी-कभी भविष्यकालीन स्थिति का वर्तमान में प्रयोग करती है। वर्तमान पर्याय की शून्यता भावशून्यता के उपरान्त भी जो वर्तमान पर्याय से पहिचाना जाता है, यही द्रव्यत्व का आरोप है । अर्थात्-जब इस प्रकार का वाणी व्यवहार होता है, तब उसे द्रव्यनिक्षेप. कहते हैं। ___ जैसे-अंगारमर्दक द्रव्याचार्य थे। उनमें आचार्य के गुण न होने के कारण उन्हें द्रव्याचार्य कहा गया है। किसी घड़े में किसी समय घी भरा जाता था, किन्तु आज वह घड़ा खाली है, फिर भी उसे 'घी का घड़ा' कहना द्रव्यनिक्षेप है। अथवा घी भरने के लिए एक घड़ा मंगवाया, लेकिन उसमें घी भरा न हो, फिर भी 'घी का घड़ा' कहना । राजा के पुत्र को, या राज्य चले जाने पर भी, अथवा राजा या युवराज मर जाए तो उसके मृतशरीर को भी, या राजा सम्बन्धी ज्ञान को भी राजा कहना-द्रव्यनिक्षेप है। 'राजा तो मेरे अंतर में बसता है', ऐसा शब्द प्रयोग भी द्रव्य निक्षेप का सूचक है । कभी-कभी द्रव्यनिक्षेप अनुपयोग के अर्थ में भी प्रवर्तित होता है । जैसे-बिना उपयोग के किया हुआ आवश्यक द्रव्य-आवश्यक कहलाता है। शास्त्रकारों ने आत्मा, देह, ज्ञान आदि का सम्बन्ध बताते हुए आगमद्र व्यनिक्षेप और नोआगमद्रव्यनिक्षेप ऐसे दो द्रव्यनिक्षेप बताए हैं। यहाँ आगम शब्द से ज्ञान या उपचार से ज्ञान को धारण करने वाले आत्मा को भी आगम कहा है। ___जो आत्मा पहले उपयोग वाला था, भविष्य में भी कभी उपयोग वाला होगा, किन्तु वर्तमान में उपयोग वाला नहीं है, अतः यहाँ द्रव्यनिक्षेप माना जाता है । जो शरोर आत्मा के गुणों से रहित है, फिर भी उसे आत्मा कहना नोआगम द्रव्य नक्षेप है। जैसे--किसी ने कहा-आत्मा को कुचल दिया; यहाँ शरीर में आत्मा शब्द का आरोप किया गया है। नोआगम द्रव्यनिक्षेप के तीन भेद हैं-(१) ज्ञशरीर, (२) भव्यशरीर और (३) तद्व्यतिरिक्त ।। जिस शरीर में रहकर आत्मा जानता था, वह ज्ञशरीर (ज्ञायकशरीर) है। जैसे-एक विद्वान् का मृत शरीर देखकर कहना कि 'यह आत्मा ज्ञानी था, तो यह शरीर-नोआगम-द्रव्यनिक्षेप का प्रयोग है।

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