Book Title: Jain Tattva Kalika
Author(s): Amarmuni
Publisher: Aatm Gyanpith
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३०० | परिशिष्ट १
भयवश भाषण त्याग १४३
मूलाह १६२ भरत चक्रवर्ती २०५
मेघकुमार ८६ भरत क्षेत्र ५८
मैतार्य ८६ . भारप्रत्यारोहणता विनय १६६, १९७ मोहनीय कर्म८६ भाव ऊनोदरी १५८
यथाख्यात चारित्र २३६,२४० । भावना (बारह) २३२
यावत्कथिक तप १५७, १५८ भावपूजा १२०,१२१
योग १४० भाव व्युत्सर्ग १६६
योग प्रतिसंलीनता तप १६१ भाव सत्य २२३
योगशास्त्र ११३, भाव-समाधि ४५,१२०
योग सत्य २३८ भाव-समाधि १२०
यौगलिक परम्परा ७१, ७२ भाषक सिद्ध ८८
रत्नत्रय धर्म ८४, ८५ . भाषा समिति १५५,२३०
रस-परित्याग १५७,१५६ भिक्षाचरी तप ७४, १५७, १५९ राजप्रश्नीयसूत्र २०५ भिक्ष २१६, २१७
राजा-अदत्त १४४ भिक्षुपद ८५,
राजीमती ७६,७७ भिक्षु प्रतिमा ७७, २३६
रूक्ष आहार १६० मति-सम्पदा १८१, १८४
रेवती ८६ मद (आठ प्रकार का) १३७.
रौद्रध्यान १६५,१६६ मनः पर्यवज्ञान ५,
लब्धियां (श्रमण को प्राप्त होने वाली) मनःसमाहरणता २३८
२५६-२५७ मनोगुप्ति १५६
लोक ९२,६४ मनोगुप्ति भावना १४२
लोक व्यवहार विनय १६३,१६४ मनोविनय १६३, १६४
लोकानुप्रेक्षा २३५, १३६ मल्लिनाथ ६५
लोभ कषाय १३६ महावीर (भगवान) ५,८, ६७,८०,८७ लोभवश भाषण वर्जन १४३ १२४, २०३, २०५
वचन गुप्ति १५६ माधुकरी १५६
वचन विनय १६३,१६४ मान कषाय १३७
वचन सम्पदा १८१,१८३ माया कषाय १३८,
वचनातिशय ७,६-१३ मारणान्तिक समाध्यासना २४५ वन्दना २२७ माहन २१६
वर्गतप १५८ मुनिधर्म ७४
वर्गावर्गतप १५८ मुनिसुव्रतनाथ ६५
बर्ण संज्वलनता विनय १६५ मूल सूत्र (चार) २०६
वर्षीदान ४६

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