Book Title: Jain Tattva Kalika
Author(s): Amarmuni
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 585
________________ गृहस्थधर्म-स्वरूप | २५७ अतथ्य; जो हृदय को आघात पहुँचाने वाला हो, वह अप्रिय और जिसका परिणाम लाभकारी न हो, वह अपथ्य है। ऐसे मृषावाद से बचने का जो स्थूलव्रत है, वह स्थूलमृषावादविरमणव्रत कहलाता है।' ___ इस व्रत में पांच महान मिथ्यावचनों (अलीकों) का त्याग किया जाता है, शेष की यतना होती है। वे पांच अलीक ये हैं--(१) कन्यालीक-कन्या, दास-दासी आदि मनुष्यों के विषय में मिथ्या बोलना, (२) गवालीक-गाय आदि पशु के सम्बन्ध में झठ. बोलना, (३) भूम्यलोक-भूमि, खेत, मकान आदि के सम्बन्ध में असत्य बोलना, (४) न्यास पहार–किसी की रखी हुई धरोहर झूठ बोलकर हड़प जाना, (५) कूटसाक्षी-झूठी गवाही देना। ____ इस व्रत के पांच अतिचार हैं-(१) सहसाभ्याख्यान-बिना सोचे-विचारे किसी पर मिथ्या दोषारोपण करना, (२) रहस्याभ्याख्यान-किसी का गुप्त रहस्य अन्य के. समक्ष कह देना, (३) स्वदारमंत्रभेद-अपनी स्त्री की गुप्त बातें प्रकट करना, (४) भूषोपदेश-किसी को गलत सलाह, अनाचारादि की शिक्षा या झूठ बोलने का उपदेश देना, और (५) कूटलेख-झूठा लेख लिखना, झूठा दस्तावेज या झूठी बहियाँ बनाना ।' (३) स्थूल अदत्तादान-विरभण स्थूल अदत्तादान से विरत होना श्रावक का तृतीय अणुव्रत है। जिस वस्तु, जीव या यशकीर्ति आदि पर अपना वास्तविक अधिकार न हो, उसे नीति भंग करके अपने अधिकार में लेना, परधन का अपहरण करना, किसी वस्तु को उसके स्वामी की आज्ञा या इच्छा के बिना या बिना दिये ले लेना, चोरी करना-अदत्तादान है। उससे बचने का जो स्थूलवत होता है, उसे स्थूलअदत्तादानविरमणव्रत कहते हैं। इस व्रत से छोटो-बड़ी सब तरह की चोरी का त्याग किया जाता है। . इस व्रत को शुद्ध रूप से पालन करने के लिए पांच अतिचार बताए गए हैं, जिनसे बचना चाहिए-(१) स्तेनाहत-चोर द्वारा लाया हुआ, या चोरी का माल रखना, ले लेना, (२) तस्करप्रयोग-चोरों को चोरी के लिए १ 'थूलाओ मुसावायांओ वेरमणं' -स्थानांग स्थान ५, उ०१ २ तयाणंतरं च णं थूलगस्स मुसावायवेरमणस्स पंच अइयारा जाणियव्वा, न समा यरियधा, तंजहा-सहस्सब्भक्खाणे, रहस्सब्भखाणे, सदारमंतभेए, मोसोवएसे, कूडलेहक रणे । --उपासकदशांग अ० १ ३ 'थूलाओ अदिनादाणाओ वेरमणं ।' -स्थानांग स्था० ५, उ० १

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