Book Title: Jain Tattva Kalika
Author(s): Amarmuni
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 609
________________ प्रमाण-नय-स्वरूप | २७६ उसे अनुमानज्ञान प्राप्त करवाना परार्थानुमान है। यहाँ कारण में कार्य का उपचार करके स्वार्थानुमान को ही परार्थानुमान कहा जाता है । वास्तव में है तो वह स्वार्थानुमान ही। साधन और व्याप्ति के स्मरण द्वारा अनुमान किस प्रकार होता है ? इसे समझ लें-किसी स्थल पर धुआ देखा । उसे देखते ही धुंए और अग्नि को व्यप्ति होने का स्मरण हआ। अर्थात्-'जहाँ धुआ हो, वहाँ अग्नि अवश्य होती है।' इस पर से यहाँ भी अग्नि होनी चाहिए; ऐसा उसने अनुमान लगाया। ___ सात हेतु-साधन को हेतु भी कहते हैं। वह सात प्रकार का है—(१) कार्य (२) स्वभाव, (३) कारण, (४) एकार्थसमवायी (सहचर) (५) विरोधी, (६) पूर्वचर और (७) उत्तरचर। (१) कार्य विशेष देखकर कारण का अनुमान करने में कार्यरूप हेतु होता है । जैसे—यह पर्वत अग्निवाला है, धूम होने से। (२) कारण देखकर कार्य का अनुमान लगाना-कारणसाधन है। जैसे घूमते हुए चाक पर मिट्टी का पिड चढ़ा हुआ देखकर कहना-अभी कोई बर्तन बनेगा। . (३) एक अर्थ में दो या अधिक कार्यों का साथ होना एकार्थ-समवाय है। एक ही फल में रूप और रस साथ-साथ रहते हैं। अतः फूल में रूप देख कर रस या रस देखकर रूप का अनुमान करना; एकार्थसमवायी साधन है। इसे सहचर साधन भी कहते हैं। (५) स्वभाव-वस्तु का स्वभाव ही जहाँ साधन बनता हो, वह स्वभाव-साधन है । जैसे—'अग्नि जलाती है, क्योंकि वह दहन (उष्ण) स्वभाव वाली है।' ... (५) विरोधी साधन-किसी विरोधी भाव पर से वस्तु के अभाव का अनुमान करना विरोधी साधन है । जैसे—यहाँ दया नहीं, क्योंकि हिंसा हो रही है । अथवा यहाँ हिंसा का अभाव है, क्योंकि सभी दयालु हैं। (६) पूर्वचर हेतु-जहाँ किसी से पूर्ववर्ती नक्षत्र का उदय हो चुका हो, वहाँ पूर्वचर साधन है । जैसे-रोहिणी का उदय होगा, क्योंकि कृत्तिका का उदय होने से कृत्तिका नक्षत्र रोहिणी का पूर्ववर्ती है। (७) उत्तरचर हेतु-जहाँ किसी से उत्तरवर्ती नक्षत्र का उदय देखकर पूर्ववर्ती नक्षत्र का अनुमान लगाना उत्तरचर है । जैसे-भरणी का उदय हो चुका है, कृत्तिका का उदय होने से । भरणी से कृत्तिका उत्तरवर्ती है।

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